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________________ अर्यप्रकाशित रिप-सदासुब्बी का ठीक ठीक बोध नहीं हो सका है। परन्तु रन- हे भगवति वेरे परसाद, करतश्रावकाचारकी प्रशस्तिसे हमनी बात पर मरण समै मति होहु विषाद । निश्चित है कि रस्नकररड भाषकाचारकी पबनिका पंडितजीको अन्तिम कृति है। यह विक्रम संवत् पंच परम गुरुपद करि डोक, १९२० में चैत्र कृष्ण चतुर्दशी के दिन पूर्ण हुई है। संयम सहित लहूँ परलोक ॥ १४॥ उस समय पंडितजीकी उम्र ६८ वर्षकी हो चुको थी। इसके बाद माप अधिकसे अधिक दो-चार इन पर्योसे स्पष्ट प्रतीत होता है कि परिखत वर्ष ही जीवित रहे होंगे। रत्नकरण्ड प्रावकाचार सदासुखदासजी अपने समाधि मरणके लिये की पापकी यह टीका जैनशाखोंका विशेष अनु- कितने उत्सुक थे। जरूर ही उनका मरण समाधि भव प्राप्त कर लेनेके बाद लिखी गई है, इसी पूर्वक हुमा है और उसके प्रसादसे के निसन्देह कारण इसमें दिए हुए वर्णनसे पंडितजी, उनकी सद्गतिको प्राप्त हुए होंगे । चित्तवृत्तिका और सांसारिक देह भोगोंसे वास्तविक उदासीनताका बहुत कुछ मामास पंरित सदासुखजीने जो साहित्य सेवा की है, मिल जाता है। उसमें समाधि भादिका जो महत्व और अपने अमूल्य समयको जिनवाणी मध्ययन पूण पर्णन दिया है उससे पण्डितजीकी समाधि- अध्यापन और टीका कार्यमें बितानेका जो प्रबन मरण-विषयक जिज्ञासा एवं भावनाका भी कितना किया है वह सब विद्वानोंके द्वारा अनुकरणीय है। ही दिग्दर्शन हो जाता है। और भगवती आराधना संस्कृत-प्राकृतके जैनप्रन्थोंका हिन्दी भाषामें अनुकी टीकाके अन्तके निम्न दो पद्योंसे, जिनमें वादादि कर जो जैनसमाजका उपकार वे कर गये समाधि मरणकी आकांक्षा व्यक्त की गई है, मेरे हैं वह बड़ा ही प्रशंसनीय और पादरणीय है। उपयुक निष्कर्षकी पुष्टि होती है: इससे जैनसंसारमें भापका नाम अमर हो गया है। इस समय तक मुझे भापको कृतियोंका पता मेरा हित होनेको और, चला है । संभव है और भी किसी प्रथकी बच ___निका लिखी गई हो या कोई स्वतन्त्र ग्रंथ बनाया दीखे नाँहि जगतमें ठौर । गया हो। प्रस्तुत 'मर्थप्रकाशिका' टीका और उस याः भगवति शरण जुगही, रस्नकरएड श्रावकाचारकी टोकाके अतिरिक्त जिन मरण पाराधन पाऊँ सही ॥ १३ ॥ पांच कृतियोंका पता और चना है। इस प्रकार • मठसठ परसपुमायुके, बीते तुक पाधार । शेष भाषु तब गरवते, बाहु यही मम सार ॥१० १-भगवतो भाराधना टीका, संवत १९०८ में -मस्ति, त्या भावाचारदीका। भादों सुदी दोपजको पूर्ण हुई।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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