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________________ बनेट [येड, पापड, वीर-निवार • इसका सम्पादनादि करनेमें पंडित सवा सो जिनवानि प्रसाद, सुनजीका पूरे दो वर्षका समय लगा था । और यह विक्रम संवत १९१४ में वैसास शुखा दशमी विषयते भए निरिच्छुक ॥५॥ रविवार के दिन पूर्ण हुई थी। जैसा कि प्रशस्तिके मापका जन्म विक्रम संवत १८२२ में अथवा निम्न पपसे प्रकट है: उसके लगभग हुभा जान पड़ता है। क्योंकि आप संवत् उगणी से अधिक, को रत्नकरण्ड श्रावकाचारकी टीका विक्रम सं० चौदह आदितबार ॥ १९२० की चैत कृष्णा चतुर्दशीको पूर्ण हुई है और उस समय उसकी प्रशस्तिमें मापने अपनी आयु सुदि दशमी वैसाखकी, · ६८ वर्षको प्रकट की है। आपकी जन्म भूमि जयपूरण किया विचार ॥३॥ पुर है । उस समय जयपुर में राजा रामसिंहका यह टीका अपने विषयकी स्पष्ट विवेचक होने राज्य था । कहा जाता है कि पं० सदासुखदासजी के साथ साथ पढ़नेमें बड़ी ही रुचिकर प्रतीत होती राज्यके खजांची थे और आपको जीवन-निर्वाहक है। इसीसे इसके पठन-पाठनका जैनसमाजमें लिये राज्यकी ओरसे ) रु. माहवार मिला काफी प्रचार है। . करते थे। इन्हींसे आपका और आपके कुटुम्बका ___ इस टीकाके प्रधान लेखक पंडित सदासुखजी बडी पालन-पोषण होता था । इस विषयमें एक किम्बतेरापन्थ आम्नायके प्रबल समर्थक थे। आप दन्ती इस तरहसे भी कही जाती है कि आपको विक्रमकी १९ वीं २० वीं शताब्दीके बड़े अच्छे जयपुर राज्यसे ८) २० माहवार जिस समयसे विद्वान् हो गये हैं। आपका जन्म खण्डेलवाल मिलना शुरू हुआ था,वह उन्हें बराबर उसी तरह जातिमें हुआ था और आपका गोत्र 'कासलीवाल' से मिलता रहा उसमें जरा भी वृद्धि नहीं हुई । था। आप डेडराजके वंशज थे और आपके पिता एकबार महाराजाने स्वयं अपने कर्मचारियों भादि का नाम दुलीचन्द था, जैसा कि अर्थ प्रकाशिका के वेतनादिका निरीक्षण किया,तब राजाको मालूम प्रशस्तिकी निम्न पंक्तियोंसे प्रकट है: हुआ कि राज्यके खजांचीके सिबाय, चालीस वर्ष के असेंमें सभी कर्मचारियों के वेतनमें वृद्धि हुई है देडराजके वंश माहि, --वह दुगुना और चौगुना तक हो गया है । इक किंचित ज्ञाता। परन्तु खजाचीके वही पाठ रुपया हैं । अब दुलीचन्दका पुत्र, जानकर राजाको बहुत कुछ आश्चर्य और दुःख कासलीवाल विख्याता ॥४॥ हुआ । राजाने पंडितजीको बुलाकर कहा कि मुझसे भूल हुई है जो आज तक भापके वेतनमें नाम सवासुख कहें, किसी तरहकी वृद्धि नहीं हो सकी । इतने थोड़ेसे मात्मसुखका बहु इच्छुक । खर्च में भापके इतने बड़े कुटुम्बका पालन-पोषण
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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