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________________ बावजी पास दिखाई दी। उदामीनता घटी, चिन्तामें कमी हुई, फिरने लगेंगे, भूख खूब लगेगी, दस्त साफ आवेगा । माहसने फिर उद्योगशीलताकी बाँह पकड़ी। चार दिन यह दवा जरा सीसी करती है, उसकी फिक्र न करना । में खून आना बन्द हो गया । पिताजीको भी अपने एक बात और सुनिए, अब दवाके लिए मेरे पास आने जीवनकी प्राशा होने लगी, और उन्होंने अब उस का कष्ट न करें । वह तो आपके हरदुआगंजके पास ही घास-फूसको 'जीवन-मूरि' कहना शुरू किया। कपास, ज्वार, मक्के और बाजरेके खेतोंमें बहुत होती पुरियाकी आठ खुराकें चार दिनमें खतम हो गई। है। वहींसे ताजा उखड़वा मँगाइए और सुखाकर रख मैं तांगा लेकर पटवारीजीके पास पहुँचा, २१) रु. लीजिये । अभी तो कार्तिक ही है, आपको बहुत-सी और कुछ मिठाई उनके आगे रखकर निवेदन किया- पास मिल जायगी। यह गँवारू बूटी है। इधर गाँवके "दीवानजी अब पिताजी अच्छे हैं। खुन बन्द हो गया लोग इसे 'बावली पास' कहते हैं। इसका पौधा डेढ़ है, नींद आने लगी है, अब तो सिर्फ कमजोरी शेष है। फुट ऊँचा होता है, पत्तियाँ लम्बी लगती है, फलो मी थोड़ी दवा और दे दीजिए, बड़ी कृपा होगी। आपकी आती हैं, जिनमें बीज होते हैं।" सेवामें हम लोगोंकी तरफसे यह तुच्छ भेंट अर्पित है, अभिप्राय यह कि 'यावली घास' से पिताजी बिलकृपया स्वीकार करें।" कुल अच्छे हो गए । उनकी कृश काया फिर मोटी___ पटवारीजीकी प्रसनताका ठिकाना न रहा, वे साजी और तन्दुरुस्त दिखाई देने लगी । पूज्य शर्माजी बोले-"पण्डितजी अच्छे हो गए, मैंने सब कुछ भर सेरों घास उखड़वा कर अपने साथ ले गए । पिताजीने पाया। अब वे सैकड़ोंका भला करेंगे। ऐसे परोपकारी भी खूब प्रचार किया । मैं भी प्रतिवर्ष पचासों पैकेट जितने अधिक जीवें, उतना ही अच्छा । मैं वेद-हकीम मेजता रहता हूँ। जो मित्र या परिचित मिलता है, बरा' नहीं हैं। रुपए श्राप उठा लीजिए, मैं तो मुफ़्तमें यह बर उससे उसका जिक्र करता हूँ। अर्शके जिस रोगीको बांटता रहता हूँ । मेरा लगता ही क्या है । आठ आने वह दी गई, उसीको लाभ हुआ। में मनो घास इकट्ठा हो जाती है । आप चाहें, तो इस न जाने भगवती वसुन्धराके गर्भमें क्या-क्या विभमिठाई को मुहलेके बालकोंको बाँट सकते हैं, नहीं तो सियाँ छिपी पड़ी हैं । संसारमें प्रकृति माताकी व्यापकता इसे भी ले जाइए । मैं कुछ भी न लगा।" और विचित्रता समझने वाले बहुत थोड़े हैं, वे ही पटवारीजीका दो टक इन्कार देखकर फिर इसरार सच्चे ज्ञानी और पूरे पण्डित हैं। * (दीपकसे.) करनेकी मेरी हिम्मत न हुई | रुपये उठा लिए और लोहामण्डी ागरा] मिठाई बालकोंको बाँर दी। पटवारीजीने अबकी बार -- प्रचुर मात्रामें दवाई देते हुए कहा-“लीजिए, यह · यह घास पवार-कातिकमें ही होती है । इस बीस दिनको काफी होगी । इसीसे पण्डितजी चलने- साल जितनी इकट्ठी की गई थी, म सब बाँट दी गई। -
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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