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________________ २१२ भवेकान्त डि, मापाडी-निवाब सं०१४॥ पिताजी जहाँ प्रसिद्ध कवि थे, वहाँ चिकित्सक भी मैं दस मील चल कर आया हूँ, जरा झांकी तो कर बड़े अच्छे थे । बड़े २ रोगोंका सफलतापूर्वक इलाज लेने दीजिए।" करना उनके लिये साधारण बात लोग उनसे चिकित्सा कराने आते रहते थे । उन्होंने चिकित्सा पटवारीजी पिताजीकी दशा देखकर दङ्ग रह गए। कार्यसे निर्वाह अवश्य किया; परन्तु धनी होनेकी बात वे उन्हें देखकर बैठकमें श्राए और बड़ी निराशापूर्वक कभी स्वानमें भी न सोची। उनकी बताई कौड़ियोंकी एक पुड़िया देते हुए बोले-“देखिये यह एक साधुकी दवास रोगी बराबर अच्छे होते रहते थे। उनकी फीस बताई हुई बूटी है, खूनी बवासीरको तुरंत आराम कर निश्चित न थी, जिसने जो दे दिया ले लिया, ग़रीबोंसे देती है । मैंने इसे कितने ही मरीज़ों पर आजमाया है, तो कुछ लेने ही न थे बल्कि उनकी दवा-दारू और पथ्य- सब अच्छे हो गए । यह ठीक है कि पण्डितजी बहुत की व्यवस्था भी उन्हें करनी पड़ती थी। इस सेवा-भावके कमज़ोर हैं, उनमें साँस ही साँस बाकी है, फिर भी कारण पिताजी बड़े लोक-प्रिय हो गये थे । किसान, परमात्माका नाम लेकर श्राप इस बूटीको उन्हें जरूर गरीब तथा अछूत लोग उन पर अपना पूरा अधिकार पिलाइये ।" मममते थे । पिताजी भी अमीरोंस पीछे बात करते, पटवारीजीको यह पुड़िया पं० पद्मसिंह शर्माने पहले गरीबोंकी कष्ट कथा सुनते थे । इसलिये बीमारीमे बड़े बेमनसे ली । खोलकर देखा, तो घास-फूस कूड़ाउनके भक्त दर्शनार्थियोंका तांता लगा रहता था। करकट ? अरे, यह क्या बवाल ? - * "नहीं, नहीं, बवाल नहीं, यह तो अमृत है । "क्यो भाई कैसे पाए, कहाँ रहते हो ?' सामने आप इस दवामेंसे दस माशे लेकर पन्द्रह-बीस काली खड़े हुए एक ग्रामीण भाईस पं० पद्मसिह शर्माने बड़ी मिर्च मिलवाइये और भग की तरह घोट पीस तथा उदासीनतासे पूछा। डेढ़ पाव जलमें छानकर अभी पिला दीजिए और इसी "पण्डितजीकी बीमारीका हाल सुनकर पाया हूँ.. तरह सु बह पिलाइए । तीन-चार दिन करके तो देखिए, का पटवारी हूँ सुना है, उन्हें बवासीरकी बीमारी है। परमात्माने चाहा, तो श्राराम हो जायगा ।" ग्रामीण -मोटे मोटे कपड़े पहने हुए उस आगन्तुकने उत्तर भाईने कहा। दिया। पं० पद्मसिह शर्माके निराश हृदयम एक बार "अरे भई ! अब पण्डितजीको क्या देखोगे ? दो- फिर आशाका सञ्चार हुआ, उन्होंने मेरे भाई एक दिन के मेहमान हैं। मिलने जुलनेसे उन्हे कष्ट स्वर्गीय उमाशङ्करजीस कहा- "लो इसे पीसो होता है । मैं सुबहसे अब तक लगभग ५० श्रादमियों और छानो। कभी-कभी ऐसी जड़ी-बूटी बड़ा काम को उनके पास जानेसे रोक चुका हूँ श्राप भी क्षमा कर जाती हैं, फिर यह तो एक साधुकी करें।"-शर्माजी बड़ी निराशा और दुःखसे बोले। बताई है ।" शामको दवाकी पहली मात्रा दी गई और ___ "नहीं साहब, मैं पण्डितजीके दर्शन करके लौट फिर सुबह पिलाई गई । इतने ही से खूनका वेग कुछ जाऊँगा । उन्होंने जीवन भर सबका भला किया है। कम हुआ । निपट निराशा-निशामें श्राशाकी किरण
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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