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________________ भनेका [बेड, पापड, बीर-निर्वाण सं०२४१५ सं० १७१८ की विजयादशमाको । कुछ नियम । श्यक है कि यद्यपि शिथिलाचार अपना प्रभाव बनाय । एक बातका स्पष्टीकरण करना यहाँ भाव- दिन ब दिन बढ़ा रहा था फिर भी उस समय . समय समय पर गच्छकी सुव्यवस्थाके लिये प्रस्थाका बहुत कुछ परिचय मिलता है । नं. ऐसे कई व्यवस्थापन सा और खरतर गच्छके व्यवस्थापन प्रकाशित होने के कारण उससे तत्कालीन प्राचार्योने जारी किये जिनमें से प्रकाशित व्यवस्थापनों परिस्थितिका जो तथ्य प्रकट होता है वह नीचे लिखा की सूची इस प्रकार है:-- जाता है:-- निनप्रभसूरि (चौदहवीं शताब्दी ) का 'व्यव- पतियों में क्रय विक्रयकी प्रथा जोर पर हो चली स्थापन' (प्र. जिनदत सुरि चरित्र--जयसागर सूरि थी, भावकोंकी भाँति ब्याज-बट्टेका काम भी जारी लि.) हो चुका था, पुस्तकें लिख लिख कर बेचने लगे थे। २ तपा सोमसुन्दर सूरि-रचित संविज्ञ साधु योग्य- शिक्षादिका भी क्रय विक्रय होता था। कुलकके नियम (प्र० जैनधर्म प्रकाश, वर्ष १२ अंक २ वे उद्भट उज्वल वेष धारण करते थे। हाथमें प०३) धारण करने वाले दंडके उपर दाँतका मोगरा और सं० १९८३ ज्येष्ट, पट्टनमे तपागच्छीय प्रानन्द नीचे लोहेकी साँव भी रखते थे। विमल सरिजीका 'मर्यादापट्टक' (प्र. जैनसरयप्रकाश ३ यति लोग पुस्तकों के भारको वहन करनेके वर्ष २ अङ्क ३ पृ० ११२) लिये शकट, उंट, नौकर मादि साथ लेते थे। ४ सं० १६.३ यु० जिनचन्द्रसूरिजीका क्रिया ज्योतिष वैद्यक प्रादिका प्रयोग करते थे; जन्म उद्धार नियम पत्र (प्र. हमारे द्वारा लि. युगप्रधान पत्रियां बनाते व भौषधादि देते थे। जिनचन्द्रसूरि ) धातुका भाजन, धातुकी प्रतिमादि रख पूजन ५ सं० १६४६ पो०,सु० १३ पत्तने हारविजय करते थे। सरिपट्टक ( जैनसत्य प्रकाश वर्ष २ अङ्क २ पृ० ७५) ६ सात भाठ वर्षमे छोटे एवं प्रशुद्ध जातिके ६ सं० १६७७ वै० सु० . सावलीम विजयदेव विजयदव बालकोंको शिष्य बना लेते थे, लोच करनेके विषयमें मरिका 'साधुमर्यादापट्टक' (३० जैनधर्म प्रकाश वर्ष एवं प्रतिक्रमणको शिक्षितता थी। ५२ पत्र : पृ०१७) • साध्वियोंको बिहारमें साथ रखते थे व ब्रह्मसं० १७११ मा० सु०१३ पत्तन, विजयसिंह वर्ष यथारीति पालन नहीं करते थे। सरि (प्र. जै० धर्म प्रकाश वर्ष ५२ अंक २ पृ. १५) परस्पर मगदा करते थे, एक दूसरेकी निन्दा सं० १०१८ मा० सु. ६ 'विजय उमारि करते थे। पट्टक' (जैन सत्यप्रकाश वर्ष २ अंक पृ. ३७८) . उपर्युक्त जिनचन्द्रसूरिखीका पत्र अप्रकाशित (अठारहवीं शताब्दीके पति और श्रीपूज्यों के पार हमारे संग्रह है। स्परिक पुओं तथा मारपीटके दो वृहद वर्णन हमारे इन मर्यादा-पटकोंसे तत्कालीन पति समाजकी संग्रहमें भी है)
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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