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अनेकान्त
[वर्ष ३, किरण १
उनकी कोई सुनाई नहीं थी। धार्मिक कार्योंमें भी जाताथा । कल्याणपथमें विशेष मनोयोग न देकर लोग उनको उचित स्थान न था अर्थात् स्त्री जाति बहुत कुछ ईश्वरकी लम्बी लम्बी प्रार्थनाएँ करनेमें ही निमग्न थे। पददलित सी थी।
और प्रायः इसी में अपने कर्तव्यको इतिश्री' समझते थे। __ यह तो हुई उस नीच नातीयवादकी बात, इसी इस विकट परिस्थिति के कारण लोग बहुत प्रशान्तिप्रकार वर्णाश्रमवाद भी प्रधान माना जाता था। सा- भोग कर रहे थे । शूद्रादि तो अत्याचारोंसे ऊब गये थे। धनाका मार्ग वर्णाश्रमके अनुसार ही होना आवश्यक उनकी प्रान्मा शान्ति-प्राप्तिके लिये म्याकुल हो उठी समझा जाता था। इसके कारण सरचे वैराग्यवान थी। वे शान्तिकी शोध थातुरमे होगये थे। भगवान व्यक्तियोंका भी तृनीयाश्रमके पूर्व सन्यास ग्रहण उचित महावीरने अशान्तिके कारणों पर बहुत मननकर,शान्तिनहीं समझा जाता था।
के वास्तविक पथका गंभीर अनुशीलन किया । उन्होंने इसी प्रकार शुष्क क्रिया काण्डोंका उस समय बहुत पूर्व परिस्थितिका कायापलट किये बिना शान्ति-लाभको प्राबल्य था। यज्ञयागादि म्वर्गके मुख्य साधन माने असम्भव समझ, अपने अनुभूत सिद्धान्तों-द्वारा क्रान्तिजाते थे, बाह्य शुद्धिकी ओर अधिक ध्यान दिया जाता मचादी । उन्होंने जगतके बातावरणकी कोई पर्वाह न था । अन्तरशुद्धिकी भोरमे लोगोंका लक्ष्य दिनोंदिन कर साहसके साथ अपने सिद्धान्तका प्रचार किया। हटता जा रहा था। स्थान स्थान पर तापस लोग उनके द्वारा विश्वको एक नया प्रकाश मिला । महावीरतापसिक बाह्य कष्टमय क्रियाका किया करते थे और के प्रति जनताका पाकर्षण क्रमशः बढ़ता चला गया । जन साधारणको उनपर काफी विश्वास था।
फलनः लाखों व्यक्ति वीरशासनकी पवित्र छत्र-छाया में वेद ईश्वर कथित शाम है, इस विश्वासके कारण शान्ति लाभ करने लगे। वेदाज्ञा सबसे प्रधान मानी जाती थी, अन्य महर्षियोंके वीर शासनकी सबसे बड़ी विशेषता विश्वप्रेम' है। मत गौण थे । और वैदिक क्रियाकाण्डों पर लोगोंका इस भावना-द्वारा महिंसाको धर्ममें प्रधान स्थान मिला। बहुत अधिक विश्वास था । शास्त्र संस्कृत भाषा में होनेसे सब प्राणियोंको धार्मिक अधिकार एक समान दिये साधारण जनता उनसे विशेष लाभ नहीं उठा सकती गये । पापी से पापी और शुद्ध एवं स्त्रीजातिको मुक्तिथी । वेदादि पढ़नेके एममात्र अधिकारी ब्राह्मण ही माने तकका अधिकारी घोषित किया गया और कहा गया जाते थे।
कि मोक्षका दर्वाज़ा सबके लिये स्वुला है, धर्म पवित्र ईश्वर एक विशिष्ट शक्ति है, संसारके सारे कार्य वस्तु है, उसका जो पालन करेगा वह जाति अथवा उसीके द्वारा परिचालित हैं, सुख-दुख व कर्म फलका कर्ममे चाहे कितना ही नोचा क्यों न हो, अवश्य पवित्र वाता ईश्वर ही है, विश्वकी रचना भी ईश्वरने ही की हो जायगा । साथ ही जातिवादका जोरोंसे खंडन किया है, इत्यादि पाने विशेषरूपसे सर्वजनमान्य थीं । इनके गया, उप और नीचका सच्चा रहस्य प्रकट किया गया कारण लोग स्वावलम्बी न होकर केवल ईश्वरके और उपता-नीचताके सम्बन्धमें बातिके बदले गुणोंको भरोसे बैठे राफर मास्मोतिके सच्चे मार्गमें प्रयवशील प्रधान स्थान दिया गया । सबा ब्राह्मण कौन है, इसनहीं थे। मुक्ति खाभ ईश्वरकी कृपा पर ही निर्भर माना पर विशद व्याख्या की गई, जिसकी कुछ रूपरेखा जैनों.