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________________ अनेकान्त । वैसाख, वीर निर्वाण सं० २४६६. चाहे जितना सत्याग्रह क्यों न करें, वे हमारी बात करने में राजकीय परिस्थिति के कारण कामयाब समझ ही नहीं सकते। न हो सके, वो हिजरत करके अपनी शक्ति बढ़ानी घर में जब बिल्ली धुस जाती है तब हम उसे चाहिये और साथ साथ सरकारको भी ठीक करने बाहर जानेके लिये मुँह से नहीं कहते. किमीके की कोशिश करनी चाहिये। द्वारा सूचना भी नहीं देते, किन्तु उसे प्रयत्न पूर्वक जब तक ऐसा कोई इलाज हाथमें नहीं पाया भगा देते हैं। उसी तरह जो लोग स्वभावतः है, तब तक या तो सब तरहके कष्ट सहन कर लेने अत्याचारी हैं और जिनके पास दूसरा कोई पेशा चाहिये, सब तरहकी यन्त्रणायें बरदाश्त करनी ही नहीं है ऐसे लोगोंको सामाजिक संगठन-द्वारा चाहियें, या फिर आत्महत्या करनी चाहिये । रोकना बहुत ही जरूरी है और ऐसे रोकनेके प्रयत्नमें थोड़ी हिंसा भी हो जाय तो भी हम उसे सरकार जिम्मेवार है अहिंसा ही समझना चाहिये। कहा जाता है कि काठियावाड़के बहास्वटिया बागी लोग जब किसी राजास न्याय नहीं पा सरहद में क्या उपाय करें? सकते थे, तो निर्दय होकर उस राजाकी बेकसूर सरहद से जब मनुष्यके अपहरणको, जबर- रियायाको परेशान करते थे। अब जब सरहदकी दस्ती धर्मान्तर करानेकी और खून आदिकी खबरें मुसलमान प्रजासे हम बच नहीं पाते हैं, नब उनके हम सुनते हैं तब यह सोचने लगते हैं कि इसका साथ लड़नेकी अपेक्षा हमें अपनी सरकारको ही क्या इलाज करें? _____ तङ्ग करना चाहिये । राजाकं दोषके लिये जनतालोगोंके जान-मालकी रक्षा करनेका ठेका को दण्ड देना उतना न्याय नहीं है जितना कि जिसने लिया है वह सरकार इसका इलाज या तो जनताकं दोषके लिये राजाको दण्ड देना है। अगर कर नहीं सकती है, या करना नहीं चाहती है। देशी राजा हमें परेशान करते हैं, तो हम और अगर चाहती भी हो, तो उसके लिये काफी इसका इलाज ब्रिटिश सरकार को ही ठीक करके प्रयत्न नहीं करती है। ऐसी हालत में हमें क्या कर सकते है। अगर सरहदके मुसलमान हिन्दुओं करना चाहिये ? जवाब स्पष्ट है । यदि हम अपना का अपहरण करते हैं, तो उसका इलाज उन बलिदान दे सकते हैं तो शुद्ध अहिंसक बनकर मुसलमानोंसे बैर करनेसे नहीं होगा, किन्तु ऐसी प्रसन्नता से बलिदान दे दें। यदि यह हम न बनें, हालतको मंजूर रखने वाली सरकारको ही दण्ड तो अपनी जानको खतरे में डालकर जिस तरह देने से हो सकता है । तब जाकर सरकार अपने हो सके, अत्याचारोंका प्रत्यक्ष विरोध करना कर्तव्यको पहचानेगी। * सीखें। और अगर यह भी न कर सकें या ऐसा * सर्वोदय' के वर्तमान मई मासके १०वें अक से उद्धृत । -
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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