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________________ कार्तिक, वीरनिर्वाण सं०२४६६] जैनदृष्टिका स्थान तथा उसका आधार उपयोग किया है पर स्याद्वादके ही ऊपर संख्याबद्ध अपने पिता रामचन्द्रको यज्ञदत्त के द्वारा मामा कहे शास्त्र जैनाचार्योंने ही रचे हैं। जाने पर उससे झगड़ता है, इसी तरह यज्ञदत्त रामचन्द्र उत्तरकालीन प्राचार्योंने यद्यपि महावीरकी उस को देवदत्त द्वारा पिता कहे जाने पर लड़ बैठता है । पुनीत दृष्टि के अनुसार शास्त्र रचना की पर उस मध्यस्थ दोनों लड़के थे बड़े बुद्धिमान । वे एक दिन शास्त्रार्थ भाव को अंशतः परपक्षखंडनमें बदल दिया । यद्यपि करने बैठ जात हैं-यज्ञदत्त कहता है कि -रामचन्द्र यह आवश्यक था कि प्रत्येक एकान्तमें दोष दिखाकर मामा ही है; क्योंकि उसकी बहिन हमारी माँ है अनेकान्तकी सिद्धि की जाय, पर उत्तरकालमें महावीर हमारे पिता उस साला कहते हैं, उनकी स्त्रीको हम की वह मानमी अहिंसा उस रूपमें तो नहीं रही। मांई (मामी) कहते हैं, जब वह श्राता है तो मेरी मांके अनेकान्तदृष्टि विकासकी चरमरेखा है पैर पड़ता है, हमें भान जा कहता है इत्यादि । इतना इम तरह दर्शनशास्त्रके विकासके लिहाज़से विचार ही नहीं यज्ञदत्त रामचन्द्र के पिता होनेका खंडन भी करता करने पर हम अनेकान्तदृष्टिसे समन्वय करने वाले जैन. है कि यदि वह पिता होता तो हमारी माँका भाई कैसे दर्शनको विकामकी चरमरेग्वा कह मकते हैं । चरमरेखा हो सकता था ? फिर हमारे पिता उसे साला क्यों कहते ? में मेरा तात्पर्य यह है कि दो विरुद्धवादोंमें तब तक ___ वह हमारी मांके पैर भो कैसे पड़ता ? हम उसे मामा दिमागी शुष्क कल्पनात्रोंका विस्तार होता जायगा जब ___ क्यों कहत ? श्रादि । देवदत्त भी कब चुप बैठने तक उमका कोई वस्तुस्पर्शी हल-ममाधान-न मिल वाला था, उमने भी रामचन्द्र के पिता होनेका बड़े फटा. जाय। जव अनेकान्तदृष्टिस उनमें मामजस्य स्थापित हो टोपस समर्थन करत हुए कहा कि-नहीं, रामचन्द्र जायगा तब झगड़ा किम बातका और शुष्कतर्क जाल पिता ही है क्योंकि हम उमे पिता कहते हैं, उसका किम लिए ? प्रत्येक वादके विस्तारमें कल्पनाएं तभी भाई हमाग चाचा है, हमारी मां उस भाई न कहकर तक बराबर चलेंगी जब तक अनेकान्तदृष्टि ममन्वय स्वामी कहती है । वह उसके मामा होनेका खंडन भी करता है कि यदि वह मामा होना तो हमारी माँ क्यों करके उनकी चरमरेखा पूर्ण-विगम-न लगा देगी। .. उस नाथ कहती ? हम भी क्यों न उस मामा ही कहते स्वतः सिद्ध न्यायाधीश श्रादि । दोनों केवल शास्त्रार्थ ही करके नहीं रह जाते अनेकान्तदृष्टिको हम एक न्यायाधीशके पद पर किन्तु अापसमें मारपीट भी कर बैठते हैं । अनेकान्तअनायास ही बैठा मकने हैं । अनेकान्तदृष्टि के लिए दृष्टि वाला रामचन्द्र पाममें बंटे बेटे यह सब शास्त्रार्थ न्यायाधीशपद प्राति के लिये वोट मांगनेकी या अर्जी तथा मल्लयुद्ध देख रहा था। वह दोनों बच्चोंकी बातें देनेकी ज़रूरत नहीं है,वह तो जन्मसिद्ध न्यायाधीश है। सुनकर उनकी कल्पनाशक्ति तथा युक्तिवाद पर खुश यह मौजूदा यावत् विरोधिदृष्टि-म्प मुद्दई मुद्दायलोका होकर भी उम बौद्धिकवाद के फलस्वरूप होने वाली मारउचित फैमला करने वाली है। उदाहरणार्थ-देवदत्त पीट-हिंमास बहुत दुग्वी हुआ। उसने दोनों लड़कोंको और यज्ञदत्त मामा-फयाके भाई भाई हैं । देवदत्त बुलाकर धीरेसे वस्तुस्वरूप दिखा कर समझाया किरामचन्द्रका लड़का है-और यज्ञदत्त भानजे । देवदत्त बेटा यज्ञदत्त ! तुम तो बहुत ठीक कहते हो, मैं तुम्हारा
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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