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. . साहित्य परिष और समायोजन womentin dianewsonam
बसाली, या कुकृत्य है, अचल है, है, उसके महोत्सव है । • लिये काज और कंचन क्या ! परि और मित्र क्या! यह सिद्धिमार्ग वेशधारीका मार्ग नहीं. तथागतका
स्तुति और चिन्दा स्या! योग और वियोग क्या ! मार्ग है। यह मुदका मार्ग नहीं । सन्मतिका, मार्ग जन्म और मरण स्या! दुख और शोक क्या ! वह है। यह निर्यलका मार्ग नहीं, बीरका मार्ग है। सूर्वके समान तेजस्वी है, वायुके समान स्वतंत्र है, .... . .
. बाकायके समान निलेप है। मृत्यु उसके लिये मृत्यु - सूत्रमाग' :-१२,' उत्तरायण १४, नहीं, वह मृत्युकी मृत्यु है, वह मोक्षका द्वार है, वह सुबतक उप० २.२.४.
ত্মত্ম জ্বাহি আল জালাল
(१) तस्वन्यायविभाकर-लेखक, प्राचार्य वि- नादि-द्वारा अच्छी तरहसे व्यक्त किया जाता । पुस्तकके जयलन्धि सूरि । प्रकाशक, शा० चन्दूलाल जमनादास, साथमें विषयसूची तकका न होना बहुत ही खटकता बाणी (बडोदा)। पृष्ठ संख्या, १२४ । मूल्य, आठ है। फिर भी पुस्तक संस्कृत जाननेवालोंके लिये पढ़ने श्राना।
तथा संग्रह करनेके योग्य है। मूल्य कुछ अधिक है। यह 'लब्धिसूरीश्वर-जैन ग्रंथमालाका ४था प्रथ । है । इसमें १ सम्यक श्रद्धा, २ सम्यशान और ३ सम्यक (२) चैत्यवन्दन चतुर्विशतिः-लेखक, श्रीचरण ऐसे तीन विभाग करके, पहलेमें जीवादि नव. विजयलब्धिपूरि । प्रकाशक, चंदुलाल जमनादास तत्त्वोंका (जीव, अजीव, पुण्य, पाप, श्राश्रव, संवर, शाह, छाणी (बड़ौदा स्टेट)। पृष्ठ संख्या, ३४ । निर्जरा, बन्ध, मोक्षके क्रमसे ) गुणस्थान मार्गणादि मूल्य दो थाना । निरुपण-सहित, दूमरे में मत्यादि पंचशानों-प्रत्यक्षादि- यह लब्धिसूरीश्यर-जैनग्रंथमालाका ८ वा अन्य प्रमाणों-अाभामों-सप्तभंगों-नयों तथा वादोंका, और है। इसमें मुख्यगया चौबीम तीर्थंकरोंकी चैत्यवन्दनावीमरेमें चरण-करणभेदसं यतिधर्मका वर्णन संस्कृत रूपमें स्तुति भिन्न भिन्न छंदोंमें की गई है-२३ तीर्थगद्यम दिया है। वर्णनकी भाषा सरल और शैली करीकी स्तुति तीन तीन पद्योंमें और महावीरकी पाँच सुगम तथा सुबोध है। यतिधर्मका वर्णन बहुत ही पद्योंग है । तदनन्तर सीमंधर जिन, सिगिरि, सिद्धसंक्षिप्त है और यह बारह भावनाओं, लोक तथा पुला- चक्र, पर्युषणपर्व, ज्ञानपंचमी मौनैकादशी, ऋषभानन कादि निर्गन्थों के स्वरूप-कथनको भी लिये हुए है। गिन, चन्द्राननजिन, वारिणजिन और फिर वर्धमान श्रावकाचारका कोई वर्णन साथ में नहीं है, जिसकी जिन की भी चैत्यवन्दन रूपमें स्तुतियाँ भिन्न भिन्न छंदों सम्यक्चरण विभाग में होनेकी जरूरत थी। प्रस्तावना तथा एकसे अधिक पयोमं दी हैं । स्तुतियाँ सब संस्कृत साधारण दो पृष्ठकी है और वह भी संस्कृतमें। अच्छा में हैं और जिन छंदों में है उनके लक्षण भी संस्कृतमें होता यदि प्रस्तावना हिन्दी में विस्तारके साथ लिखी जाती ही फुटनोटमि दिये गये हैं। पुस्तक अच्छी है और और उसमें ग्रंथकी उपयोगिता एवं विशेषताको तुल सुंदर छपी है।