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भनेकान्त
[चैत्र, बीर-निर्वाण सं०२४९९
पीछेको मानने पर उसे कुछ बादका ही क्यों माना है कि पचसंग्रह कारने ही उन्हें गुणधर.भाचार्य, जाय सो भी समझमें नहीं पाता। चारित्र-पाहुड़- कुन्दकुन्द, पूज्यपाद वीरसेन आदि आचार्योंकी से उद्धरण तो तबसे लगाकर अबतक कभी भी रचना परमे ही संग्रह किया हो। यह भी होसकता किया जा मकता हैं।
है कि पूज्यपाद व वीरसेन तथा पंचसंग्रहकारने ___ यदि कहा जाय कि वीरसेन व पूज्यपादने उन्हें किसी अन्य ही ग्रंथमे उद्धत किया हो । ऐसी अपनी टीकामों में वे गाथाएँ स्पष्टतः नद्धृत की हैं, अवस्थामें अभी केवल समान गाथाओंके पाये किन्तु पंचसंग्रहमें वे बिना ऐसे किसी संकेतके जानेसे पंचसंग्रहको वीरसेन व पूज्यपादसे निश्चभाई हैं इस कारण वे पंचसंग्रहकारकी मूल यतः पूर्ववर्ती कदापि नहीं कह सकते । संग्रहकारके पचनाही समझी जानी चाहियें तो यह भी यक्ति समय-निर्णय लिये कोई अन्य ही प्रबलव संगत नहीं होगा। गोम्मटसारमें भी वे सैकड़ों स्वतंत्र प्रमाणों की आवश्यकता है। विशेषकर जब गाथाएँ बिना किसी उद्धरणकी सूचनाके आई हैं कि ग्रंथकार स्वयं ही अपनी रचनाको 'संग्रह' कह जो धवलामें 'उक्तं च रूपसे पाई जाती हैं और रहे हैं तब सम्भव तो यही जान पड़ता है कि वह मदि हमें गोम्मटसारके कर्ताके समयका ज्ञान नहीं बहुतायत अन्य ग्रंथों परसे संग्रह की गई है। होता तो संभवतः उक्त तर्क सरणिसे उसके विषय- ये 'सार' या 'संग्रह' ग्रंथ प्रायः इसी प्रकार तैयार में भी यही कहा जा सकता था कि उसी परसे होते हैं। उनमें कर्ताकी निजी पंजी बहुत कम हा धवलाकारने उन्हें उद्धृत किया है। अतः गोम्मट- करती है । आश्चर्य नहीं जो उक्त पंचसंग्रह धवला सार पहिलेकी रचना है । किन्तु हम प्रामाणिकता- से पीछेकी रचना हो । उसका सिद्धान्त-ग्रंथसे से जानते हैं कि गोम्मटसारमें ही वे धवलासे कुछ सम्बन्ध होनेके कारण गोम्मटसारके समसंग्रह की गई हैं। इसी प्रकार यह असम्भव नहीं कालीन होनेको सम्भावना की जा सकतीहै।
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प्रश्न
[श्री रत्नेश' विशारद ] शून्य विश्व के अन्तस्तल को, ज्योति-युक्त करता है कौन ? जग-जीवन-जर्जर-सा होवे, प्राणदान देता है कौन ?
अन्धकारमय हृदय-पटल में, वह अनन्त बल लाता कौन ? इस अस्थिर-मय क्रूर देह की, चंचलता को हरता कौन ?
BADAUNUNDREHRSHEREKASH
RESURREARINESSMEAISAIERIERIES
Harior
AImMOHHumnuarANATAKA