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________________ .. " बनेका [त्र, बीर-निर्वाच सं०२४५ पंचास्तिकायरूप द्रव्यों से पुद्गलोको रूपी बत- मध्य सहभावि गुणों तथा कमभावि-पायों बाला लानेका फलितार्थ यह होता है कि जीव, धर्म, अधर्म, होता है। और प्राकाश, ये चार द्रव्य अरूपी है-स्पर्श, रस,गंध, यह सत्र उमास्वातिके 'गुणपर्ववण्यन्य सूत्रसे कुछ श्रो वर्णसे रहित प्रमूर्तिक है। यह सूत्र और उमा- विशेषताको लिये हुए है। इसमें गुणका स्वरूप सहभावी स्वातिका चौथा सूत्र अक्षरसे एक ही हैं। और पर्यायका क्रममावीभी बतला दिया है । धर्मादेरक्रियत्वी ॥४॥ कालश्च ॥६॥ 'धर्म माविक प्रक्रियत्व है।' 'काव भी इन्य है। यहाँ 'पादि' शब्दसे अधर्म और प्राकाशका संग्रह यह सूत्र और उमास्वातिका ३६ वाँ सूत्र अक्षरसे किया गया है, क्योंकि पंचास्तिकायमें धर्म द्रव्यके बाद एक है। ये ही पाते हैं। ये तीनों द्रव्य क्रियाहीन हैं। जब ये अनंतसमयश्च ॥१०॥ क्रियाहीन है तब शेष जीव और पुद्गल द्रव्यक्रिया- (कानन्य ) अनन्त समय (पर्याय ) वाला वान है, यह स्त्र-सामर्थ्यसे स्वयं अभिव्यक्त हो जाता है।' है। उमास्वातिके 'निष्क्रियाशि' सूत्रका और इसका यह सत्र उमास्वातिके 'सोऽनन्तसमयः'सूत्रके साथ एक ही श्राशय है। बहुत मिलता जुलता है और एक ही प्राशयको लिये जीर्वादेर्लोकाकाशेऽक्गाहः ॥५॥ हुए है। 'नीवादिकका जोकाकाशमें अवगाह है।' गुणानामगुणत्वं ॥११॥ यहाँ. 'मादि' शब्दसे पुद्गल, धर्म, और अधर्म गुणों के गुणत्व नहीं होता।' का संग्रह किया गया है-चारों द्रव्योंका अाधार लोका- गुण स्वयं निगुण होते हैं । गुणोंमें भी यदि . अन्य काश है । श्राकाश स्वप्रतिष्ठित-अपने ही आधार पर गुणोंकी कल्पना की जाय तो वे गुणी, गुणवान् एवं स्थित है इसलिये उसका अन्य आधार नहीं है । यह द्रव्य हो जाते हैं, फिर द्रव्य और गुणमें कोई विशेषता सत्र और उमास्वतिका १२ वाँ 'बोकाकाशेऽवामहः' नहीं रहती और अनवस्था भी आती है । यह सत्र उमासूत्र प्रायः एक ही है। स्वाति के 'न्याश्रयाः निर्गुणा गुगा:' इम सूत्र (नं. सत्त्वं द्रव्यलक्षणं ॥६॥ ४१, श्वे० ४० ) के समकक्ष है। 'इन्याश्रयाः' पदका श्राशय इससे पूर्व ८ सूत्रमें 'सहभावी' विशेषणके . उत्पादादियुक्त सत् ॥ द्वारा व्यक्त कर किया गया है। 'इन्यका लक्षण सत्व (सतकाभाव) है।' इति श्रीवृहत्प्रभाचंद्रविरचिते तत्त्वार्थसूत्रे 'उत्पाद भावि ( वय, धौम्य ) से जो युक्त है वह पंचमोध्यायः ॥॥ 'इस प्रकार श्री हल्लभाचन्द्र-विरचित तत्वार्थसूत्र में के सत्र समास्वातिके 'सायबाप और 'उत्पाद- पांचवां मन्याय समास दुपा।' या प्रोपयुकं सदः इन सूत्रों के साथ पूर्ण सामंजस्य (मागामी किरबमें समास) रखते हैं और एक ही बाशयको लिये हुए हैं। सहकमभाविगुणपर्ययवद्रव्यं ॥८॥ #श्वेताम्बरीष सूत्रपाटमसकनन्तर हत्या जापा है और इसे ३५ नम्बर पर दिया है।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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