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________________ अनेकान्त .. नि सं०१५ 'याकि मही-जिसके लिखे जाने की बहुत बड़ी सम्भावना है उसमें छूट गया है । उसके मामने आने पर और भी है। यदि कोई टीका-टीप्पणी। उपलब्ध है तो उसे भी. , कुछ बातों पर प्रकाश पड़नेकी संभावना है, और इस विशेष परिचयादि के द्वारा प्रकाशमें लाना चाहिये . लिये इस ग्रंथकी दूसरी प्रतियोंको खोजनेकी और भी - 'फिर भी इस प्रयके विषय में इतना कह देनेमें तो ज्यादा जरूरत है। आशा है इसके लिये साहित्य प्रेमी कोई आपत्ति मालम नहीं होती कि इसके सूत्र अर्थ- : विद्वान् अपने अपने यहाँके शास्त्रभंडारोको ज़रूर हो गौरवको लिये होने पर भी प्राकारमें छोटे, सुगम, कण्ठ खोजनेका प्रयत्न करेंगे और अपनी खोजके परिणामसे करने तथा याद रखने में सामान है, और उनसे तत्त्वार्थ- मुझे शीघ्र ही सूचित कर अनुगृहीत करेंगे। शास्त्र अथवा मोक्षशास्त्रका मूल विषय सूचनारूपमं । ' संक्षेपतः सामने श्राजाता है। मूनग्रंय और उसका अनुवादादिक .. • एक बात और भी प्रकट कर देनेकी है और वह नीचे मूल ग्रंथके सूत्रादिको उदधृत करते हुए जहाँ 'यह कि इस सूत्रग्रन्थके शुरूमें प्रतिपाद्य विषयक सम्बध- मूलका पाठ सष्टतया अशुद्ध जान पड़ा है वहाँ उसके को व्यक्त करता हुआ एक पद्य मंगलाचरणका है,परन्तु स्थान पर वह पाठ दे दिया गया है जो अपने को शुद्ध अन्तमें ग्रंथकी समाप्ति श्रादिका सूचक कोई पद्य नहीं है। प्रनीत हुआ है और ग्रन्थप्रतिमें पाये जाने वाले अशुद्ध ऐसे गद्यात्मक सूत्रग्रंथों में जिनका प्रारम्भ मंगलाचर- पाठको फुटनोट में दिखला दिया है, जिससे वस्तुस्थितिके सादिके रूपमें किसी पद्म-दाग होता है उनके अन्तमें टीक समझने में कोई प्रकारका भ्रम न रहे और न मूल भी कोई पद्य समाप्ति आदिका जरूर होता है, ऐसा सूत्रोंके पढ़ने तथा ममझने में कोई दिक्कत ही उपस्थित अकसर देखने में आया है। उदाहरण के लिये परीक्षा- होवे । परन्तु वकारके स्थान पर बकार और बकारके मुखसूत्र, न्यायदीपिका और राजवार्तिकको ले सकते हैं, स्थान पर वकार बनानेकी जिन अशुद्धियोंको ऊपर इन ग्रंथोंमें आदिके ममान अन्तम भी एक एक पद्य सूचित किया जा चुका है उन्हें फुटनोटोमें दिखलाने की पाया जाता है। जिन ग्रंथ पनियोंमें वह उपलब्ध नहीं ज़रूरत नही समझी गई। इमी तरह सधि तथा पद-विभिहोता उनमें वह लिखनेसे छूट गया है, जैम कि न्याय- ननादिके मंतचिन्हों को भी देनेकी जरूरत नहीं समझा दीपिका और रात्रवार्तिककी मुद्रित प्रतियोंमे अन्तका गई। इसके अतिरिक्त सो अक्षर सूत्रोभ छुट हुए. जान पद्य छुट गया है, उसे दूसरी हस्तलिम्बित प्रनियों पर पड़े हैं उन्हें सूत्रोके माथ ही [ ] इस प्रकारके से खोजकर प्रकट किया जा चुका है* । ऐसी स्थिनि कोष्ठकके भीतर रख दिया है और जो पाठ अधिक होते हुए इस सूत्रग्रंथके अन्तमें भी कमसे कम एक संभाव्य प्रतीत हुए हैं उन्हें प्रश्नांकके माथ (...?) ऐसे पद्यके होनेकी बहुत बड़ी सम्भावना है। मेरे ख्यालस कोष्ठकमें देदिया है। पाई(0) दो पाई (11)के विरामचिन्ह वह पद्य हम ग्रंथप्रतिमें अथवा जिसपरसे यह प्रतिकी गई ग्रंथमें लगे हुए नहीं हैं, परंतु उनके लिये स्थान छुटा -देखो, प्रथम वर्ष भनेकान्त' को रिण हुआ है, उन्हें भी यहां दे दिया है। और इस तरह में 'पुरानी बातोंकी बोन' शीर्षक लेखकानं.२, मूल ग्रंथको उमके असली रूपमें पाठकोंके सामने .१०२। रखनेका भरसक यत्न किया गया है। फिर भी यदि
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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