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________________ हिसा २६२ रजाती अहिंसामें सन्देह करने का दुमरा कारण यह इयों का एकमात्र रामबाण उपाय है, बल्कि हमारे किसनैतिक नियमों को उपयोगी और अच्छा जमाने के प्रत्येक मनष्यके नैतिक सिद्धान्तके वह पूरी समझते हुए भी उनकी व्यावहारिकतामें अविश्वास तरह अनकुल भी हैं। जन साधारणके दुम्वाको दूर रखते हैं। राजनीति और अर्थनीतिको वितमा नैति- करने के लिये जिम तत्वकी आवश्यकता है वही प्रत्यबतासे दूर रखा जाता है उतनी ही उनमें कृत्रिमता क मनुष्यकी आत्मिक शान्तिके लिये भी परमावश्यक की मात्रा अधिक बढ़ती है और वे खोकहिनके लिये है।" उतनी ही अनुपयोगी सिद्ध होतो हैं। सपाग्म यांत्रिक इस प्रकार अहिंमा व्यक्ति और समाजके कल्याण उपायोंमे सुन्यवस्था स्थापित नहीं की जा सकती। इस के लिये एक आवश्यक तत्व है और उसम जीवनकी नग्न सत्य को हमें स्वीकार करना ही पड़ेगा । अहिंसा सारी समस्याको हल करनेकी शक्ति संनिहित है। का तत्व इतना मनोवैज्ञानिक और श्रावश्यक है कि २५०० वर्ष पहिले भगवान महावीर और भगवान बद्धने उसकी अवहेलना नही की जासकती । टाल्स्टायके मिदान्तके रूप में विश्वके लिये अहिसाका सन्देश निम्न शब्दों के माथ हमें सहमत होना पड़ता है- दिया था; गांधीजी आएक प्रयोगवेत्ता के रूपमें "हिमाके अवलम्बन करने का केवल यही व्यवहारमें उसके फलितार्थोंको दुनियाके मामने रख कारण नहीं है कि यह हमारी तमाम मामाजिक बुरा- रहे हैं। संसार में सुखकी वृद्धि कैसे हो?-- श्री. दौलतराम मित्र ] एक कमरेमें मैं और मेरे पास ही दूसरे में एक अतएव यदि हम संसारमें सुखकी वृद्धि देखना टेंथ क्लासका छात्र, दोनों पढ़ रहे थे। छात्रने पढ़ा:- चाहते हैं तो हमारा कर्तव्य हो जाता है कि हम "The man whose silent diss संसार भरमें अति परिग्रह-विरोधी जैनाचारकी in harmless you're pent" उपयोगिताके प्रचार प्रसिद्ध करनेका उद्योग करें, अर्थात् सज्जन वह है जो अपनी सुख-घड़ीको ताकि दुराचारियोंकी संख्या बढ़ने न पात्र,सदादूसरोंकी दुःख घड़ी न बनने दें। चारियोकी सख्या बढ़ और संसारमें मुखकी वृद्धि मालूम हुआ, यह केंपियन कविकी कविता है। होवे ।। सज्जनताके इस लक्षणका मेरे दिल पर खासा असर परन्तु अफ़सोस आज दुनियाकी सूझ ( दृष्टि ) हो आया, और तुरन्त ही इससे मिलता जुलता श्रोधी ( मिथ्या ) हो रही है । जैसा कि एल.पी. और एक लक्षण मुझे याद आगया: जैक्स" का कथन है कि___ "सदाचारी वह है जो सुख-साधनोंकी लट 'आजकी दुनिया सम्पत्तिको सामाजिक (सर्व नहीं चाहता, किन्तु उनका विभाजन करनेकी चेष्टा साधारणकी चीज) बनाना चहती है। लेकिन करता है । सुख-साधनोंकी लट चाहने वाला दुरा- मनुष्यको-उसके स्वभावको-सामाजिक बनानेकी चारी है ।" (दरबारीलाल सत्यभक्त)। वाकई में बात उसे सूझती नहीं । जब तक यह नहीं होगा, सजनता इसीका नाम है। - तब तक कोई भी "इजूम" (वाद) स्थापिन नहीं चाहे वह कोई हो, जो मनुष्य श्रमसाध्य (कृषि- हो सकेगा। अगर मनुष्यका चरित्र मुधर जाय तो इत्यादि) कर्मों को छोड़कर बुद्धि और सम्पत्तिका चाहे जिस "इजम" से निभ जायगा। दुरुपयोग करके उसके बलपर दूसरोंके कधों पर बैठ आओ हम सब मंगल कामना करें और कर जन साधारणके सुग्व-साधनोंकी लूट खसोटमें साथ ही तदनुकूल प्रयत्न भी करें कि दुनियाँको लगा हुआ है, जिससे दूसरोंके सत्वरक्षाकी पर्वाह सीधी (सम्यक्) सूझ (दृष्टि) प्राप्त हो । इसीसे नहीं है वह तो सजन नहीं हो सकता। ससारमें सुखकी वृद्धि हो सकेगी।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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