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________________ 14 भनेकान्त चैत्र, वीर निर्वाण सं०२ ५०, ५४, ५५, ५६, ५७, ५६, ६०, ६१, ६२, ६७, है । और उपयोगिता की दृष्टिसे यह ग्रंथ कितने अधिक ७३, ७४ ७५ पर पाई जाती हैं। महत्वका है । उक्त प्रकरणके संकलित करने में ___ इनके सिवाय, जिन गाथाओंमें थोड़ा या बहुत पंचसंग्रहकी जिन गाथाओंका उपयोग हुश्रा है उनमेंसे पाठ-भेद अथवा मान्यताभेद पाया जाता है उनमंसे अधिकांश गाथाओंका उपयोग प्राचीन दिगम्बर कर्म उदाहरण के तौरपर यहाँ तीन गाथाएँ दी जाती हैं। माहित्यमें बराबर होता रहा है और प्राचार्य वीरसेनकी एवंदोष चत्तारि दो एयाधिया सुक्कस्स। धवला टाकामें भी हुअा है । इससे उन गाथाश्रोंका पोषण मोहविज्ने उदयहाणाणिव होंति ॥ अधिकतर दिगम्बर साहित्यसे ही सम्बंध रहा जान -प्रा. पंचसं०.५५२ पड़ना है श्वेताम्बरीय कर्म प्रकृति ग्रंथमें इस तरहकी एक्कंदोब चउरो एत्तो एकाहिया इसकोसा। प्रायः दो-तीन गाथाएँ ही उपलब्ध होती हैं। और मोहेब मोहणिजे उदयद्वाणा नव हबति । चदपिके पंचसंग्रहम ऐमी गाथाएं ८-१० के करीब ही -सप्तति, १२ पाई जाती है। मालम होता है कि चन्द्रपिके सामने मखुपगई पंचिदिय तस बायरणामसुत्यमादिजं। दिगम्बरीय प्रा० पवसंग्रह अथवा और इसी तरहका पजसं जसकिती तिथयरं याम याव होति ॥ अन्य दि० माहित्य अवश्य रहा है। -प्रा.पंचसं०,१८५ वीर संवामंदिर. सरमावा ता० १५.४ १६४० मणुषगइ जाइतस वापरं च पजत्त सुभगमाइज । उदाहरण के लिये उसकी एकगाथा नीचे दी जाती जसकिसी तिथपरं नामस्स हवंति एया (उच्च)॥ है -सप्तनिका, ५८ घाईगं छउमत्था उदीरगा रागिणो य मोहस्स। बारस पणढाई उद्य वियपेहि मोहिया जीवा। तयाजण पमत्ता जोमंता उत्ति दोपहं च ॥ चुनसोदि सत्तत्तरि पयबंधसदेहि विषणेया । -कर्म प्र०, ४,४ -प्रा. पंचस०,८३१ यह गाथा दिगम्बरीय पंचसंग्रहके चौथे प्रकरणमें बारसपणसहसया उदर विगप्पेहि मोहिया जीवा। २१४ नं०पर और गोम्मट्टमार-कर्मकाण्डमे ४५५ नं. चुलसीई सत्त्तरि पथविद सहि विन्नेया॥ पर पाई जाती है। -सप्ततिका ४८ * उदाहरण केलिए दो गाथाएं नीचे दीजाती हैंइसी तरह की प्राकृत पंचसंग्रह की गाथाए नं. भट्ठग सत्तग छका परतिग दुग एगाहिया वीसा। ५६८, ७७०,७७१, ८२८,६१७,६१८, ६३७, ६६२, तेरस बारेकारस संते पंचाइजा एकं। ६६३, ६६६, १०११, १०१४ है,जो सप्ततिकाम क्रमशः -पंचसं०१५,१० २४४ नं० २०, ३३, ४३, ४५, ५१, ५२, ५३, ६३, ६६, यह गाथा दि.पंचसंग्रहमें ५५५ नं० पर और गो. ७२, पर उक्त प्रकारके पाठ भेदादिके साथ उपलब्ध काबहमें १० नं. पर उपलब्धोती। होती है। तेवीसा पणुसा वीसा महावीस दुगुणतीसा । उपसंहार तीसेग तीस एगो बंधहाणाइ नामेह । इस सब तुलना परसे पाठक सहजमें ही जान -पंचसं०, ५५, पृ. २१. सकेंगे कि प्राकृत पंचसंग्रह की गाथाओं का उक्त तीनों पहगाथा दिपंचसंग्रहमें १४ नं. पर पाई श्वेताम्बरीय कर्म ग्रन्थों में कितना अधिक उपयोग हा जाती है। ,६६२, है,जोस ३, ४३,
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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