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________________ भनेकान्त [फाल्गुन, वीरनिर्वाण सं०२४५६ पर घदनेकी उनको इजाजत नहीं देता है और और न किसीकी खुशामद करने या भक्ति स्तुति करनेसे यहां तक बढ़ जाता है कि धर्मके कामोंके करने ही यह काम बन सकता है । बीमारी तो शरीरमें से मल से भी उनको रोक देता है, धर्मका जाननेका भी मौका दूर होनेसे ही शांत होती है, इस ही प्रकार यह जीवात्मा नहीं देता है। मायाचारके चक्करमे श्राकर चालाक भी विषय-कपायोंके फन्देसे तब ही छुट सकता है जब लोगोंने तरह तरह के देवता और तरह तरह की मिथ्या कि कर्मोंका मैल उससे अलग हो जाय और वह शुद्ध धर्म क्रियाओंमें पड़कर भटकते हुये भोले लोगोंको ठगना और पवित्र होकर ज्ञानानन्द चैतन्यस्वरूप ही रह जाय । शुरु कर दिया है। परन्तु यह काम तो जीवात्माके ही करनेका है, किसी यह सब कुछ इस ही कारण होता है कि लोग दसरके करनेसे तो कुछ भी नहीं हो सकता है। संसारके मोहमें अन्धे होकर बिना जांचे तोले आँख संसारमें हज़ारों देवी-देवता बताये जा रहे हैं मीचकर ही एक एक बातको मान लेते हैं और झूठे जिनकी नग्फ़से चारों खट यह विज्ञापन दिया जाता है बहकावे श्रा जाते हैं। वीर भगवानने लोगोको हम कि वह मर्व शक्तिमान है, जो चाहें कर सकते हैं, उनको मारी जंजालसे निकालने के वास्ते माफ शब्दोंमें मम- राज़ी करो और अपना काम निकालो । हजारों लोग काया कि वह शाँख मीचकर किमीवातको मान लेनेकी इन देवी देवताओं के ठेकेदार बनते हैं, और दावा मूर्खता (मूढ़ता) को त्याग कर, वस्तु स्वभावकी खोज बाँधते हैं कि हमको राज़ी कर ली तो सब कुछ मिद्ध करके नय प्रमाणके दाग हर एक बातको मानकर हो जाय, परन्तु इसके विरुद्ध वीर भगवानने यह नाद सवामख्वाह ही न डाने लग जावे; इस तरह लोगों के बजाया कि जीव तो अपनी ही करनीस श्राप बॅधता है मिथ्या अन्धकारको दूर करके और उनके मठे भ्रम और अपनी ही कोशिशर्स इस बँधनम निकल सकता है, को तोडकरके उनको बेखौफ बनाया और अपने आप किमी दूमरेके करनेम नो कुछ भी नही हो मकता है। को कर्मों के फन्देमे छडाकर आजाद होने के लिये कमर और इसी कारण इन्द्रादिक देवनाओंसे पूजित श्री वीर कसना सिग्वाया । वस्तु स्वभाव ही धर्म है, जबयह भगवानने अपनी बाबत भी यही सुनाया कि मैं भी नाद वीर भगवानने बजाकर लोगोंको गफलतकी नींद किमीका कुछ विगाइस गर नहीं कर सकता हूँ। इस से जगाया, पदार्थ के गुण बताकर लोगोंका भय हटाया कारण किसी दूभरेका भरोसा छोड़ कर जीवको तो आप और मब ही जीवों में अपने समान जीव बनाकर श्रापम अपने ही पैरों पर खड़ा होना चाहिये । कोका बन्धन में मैत्री तथा दयाभाव रखनेका पाठ पढ़ाया. और इस तोड़नेके वास्ते आप ही विषय-कपायोमं मुंह मोड़ना प्रकार जगत भरमें सुख शांति रहनेका डंका बचाया, चाहिये । विषय कषायोस ही कर्मबन्धन होता है और तब ही लोगोंको होश आया । कर्मोके उदयमे ही विषय-कपाय पैदा होते हैं, यह ही वस्तुस्वभाव ही धर्म है, इस गुरु-मंत्रके द्वारा वीर चक्कर चल रहा है, जो अपनी ही हिम्मतमे बन्द किया भगवान ने लोगोंको समझाया कि विषय कषायोंकी जा सकता है | किन्तु निम प्रकार पुराना बीमार एकगुलामीसे आजाद होना और अपना ज्ञानानन्द अमली दम तन्दुरुस्त और शक्तिशाली नहीं हो सकता है, दीर्घ स्वरूप प्राप्त करना ही जीवका परमधर्म है, जिसके लिये काल तक इलाज करते करते आहिस्ता आहिस्ता ही किसीकी खुशामद करते फिरने या प्रार्थनायें करनेसे काम उमति करता है, उस ही प्रकार कर्मोंका यह पुराना नहीं चल सकता है, किन्तु स्वयम् अपने पैरों पर खड़े बन्धन भी साधना करते करते आहिस्ता आहिस्ता ही होने और हिम्मत बाँधनेसे ही काम निकलता है । जिस दूर हो पाता है। प्रकार बीमारको अपनी बीमारी दूर करने के लिये स्वयं इस ही साधना के लिये वीर भगवानमे गहस्थी और ही दवा खानी पड़ती है, स्वयं ही कुपथ्यसे परहेज रखना मुनि यह दो दर्जे बताये है । जो एकदम रागद्वेष और होता है, किसी दूसरेके करनेसे कुछ नहीं हो सकता है विषय कषायोको नहीं त्याग सकते है उनके लिये गृहस्थ
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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