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अनेकान्त
[फाल्गुन, वीरनिर्वाण सं०२४६६
की मियाद निश्चित है । यह जातीय स्यापेको लोरीके बदले इतिहासकी एक कहानी सुनाई कि सदा कायम रखनेकी सखाह क्या अर्थ रखती है। बच्चा अच्छी तरह सो जाये। अखिोला न पदी हिंदुवाह, यह क्या भादका काम है जिसमें ईश्वरीय ज्ञान स्तानका इतिहास पर लिया। किन्तु जातिके मार्ग नहीं, पाल्माका नाम नहीं, सत-असतका विचार प्रदर्शकोंको, बुद्धिमानोंको, पण्डित ज्ञानियोंको अपनी नहीं । यह था, वह था; हम थे, तुम थे-इस व्यर्थके लियाकत इस व्यर्थकी विद्या नष्ट नहीं करनी वर्णनमे जातीय उन्नति क्या हो सकती है ! इस चाहिए । मीमांसा पढ़ें, षट् शास्त्र पढ़ें, व्याकरण घोटें अनुमतिसे तो मृतक शरीरकी सी गंध पाती है। नो एक पान है। किन्तु इतिहासमे न पारमाकी शुद्धि उच्च मस्तिष्क वाले और न्यायप्रिय मनुष्य इसको कदापि होती है, न परमात्मा मिलता है यह किसी अर्थका सहन न करेंगे कि मुर्दोकी को उलटा करें । यह तो नहीं है। जातीय मृत्युका कारण हो सकता है । जातीय जीवनकी हमारे पण्डितगण आज नक इतिहासकी ओर से शकत नो दिखाई नहीं देती। भादमी पंछी है । श्राज ग़ामिल हैं। कोई कवि है. कोई व्याकरण जानता है, माया, कल चला गया। दम दिन ज्यों-त्योंकर बिता कोई तर्क शास्त्र पढकर बालकी ग्वाल निकालता है, गया । अंतमें एक मुट्ठी राख बनकर गंगाजीकी शरण में कोई ज्योतिषसे ग्रहणका समय बता सकता है। किन्तु भागया । इतिहास ऐसे-ऐसे ही नौचंदीक मेलेके इतिहासके ज्ञाता कहाँ है ? पण्डितोंको तो यह भी दर्शकोंके कारोबारका वर्णन है। इनिहास केवल एक मालूम नहीं होता है कि मुसलमानोंको इस देश में बड़ा भारी पुनिसका रोजनामचा नथा व्यापारिक पाये हुए किनना समय हुआ, अथवा सिकन्दर महान बहीखाते और म्युनिसिपेलिटीके मौत और पैदाइशका का सनलजपे अपना मा मुँह लेकर लौट गया था। रजिस्टर अथवा तार्थ के पराठोंकी पोथीका संग्रह है। जातीय इतिहासके पिलमिनेसे वे अनभिज्ञ होते हैं । इससे अधिक उसकी और क्या प्रतिष्ठा है ? इतिहास उन्हें इससे क्या प्रयोजन कि कौन सी घटना कब हुई, कुव सत्व प्रास नहीं होता कोई मतलब नहीं पूरा होता या हुई भी कि नहीं हुई। उनको अन्य जातियोंका कोई सिन्धान प्रमाणित नहीं होता। फिर व्यर्थ की इतिहास नो अलग रहा. उनके अस्तित्वका भी ज्ञान माथापच्ची क्यों की जावे ? हजारों राजा हुए हैं और नहीं होता। इसी कारणमे प्राचीन काल में किन-किन बाखों और होंगे । प्रत्येक राज्य कालका हाल पढ़ने- जातियोंसे हमाग सम्बन्ध था, इस प्रश्नपर वे कुछ पढ़ते प्रकल चाकरमें भाजावे और कुछ हाथ न लगे। सम्मति नहीं दे सकते । दुःखका विषय है कि एक कोई भी मीमांसाका सिद्धान्त मालम न हो । ब्रह्म-जीव प्राचीन जानिके विद्वानोंका उसके इतिहासमे परिचय न की महत्ता, पास्माका उद्गम और उसके भविष्यका हो। काशीजी में, नदिया सब प्रकारकी विद्याका हास, मनुष्यकी मानसिक शक्तियोंका वर्णन आदि। प्रचार है, शाम, वेद,म्याकरण, सबकी प्रतिष्ठा है,किन्तु इनमें से कौनसे प्रश्नका इनिहाम हल कर सकता है। एक बेचारे इतिहासकी शक्लसे परिडत बेजार है। इस इतिहास तो भाटों भादिकीजीविका का माधन है । विषयपर न कोई प्रमाणित ग्रन्थ है, न सूत्र रचे गये हैं, पल्लो दिख बहलानेका खिलौना है । रातको न वाद-विवाद होता है, न टीका लिखी जाती है।