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________________ वर्ष ३, किरण १] जातियाँ किस प्रकार जीवित रहती है ? नहीं बरते, पहारोंकी गुफाओंसे परहेज नहीं करते। जानि बड़े यत्नसे रखती है। इनकी इस प्रकार रहा जो तप पावश्यक होगा करेंगे। अगर पेरिस पहुँचना करती है जैसे साँप खजाने पर बैठता है। वैज्ञानिक हो, तो एक पल भरमें जा धमकेंगे। अगर समुद्रकी विद्वान् सोच-विचारके पश्चात् जो ज्ञान इतिहाससे तहमें प्रयोग करना हो, तो पानीके कीड़े बनकर रहेंगे, प्राप्त करते हैं उनसे जातिकी मुक्ति होती है । उस क्योंकि हम उस अमृतकी तलाशमें हैं । आज भारतवर्ष ज्ञानकी कद्र न करने वाले नष्ट होते हैं। उसको सरजातीय जीवनका गुर हूँढता है । जान निकल रही है। आँखों पर रखने वाले इस लोकमें भी भौर परलोकमें धर्म और जाति पर प्रत्येक भोरसे आक्रमण हो रहे हैं। भी अपने मनोरथोंको पाते है। पास पासकी जातियाँ कहती है कि इसमें अब क्या रहा हिन्दुस्तान के लिए संसारका इतिहास क्या सन्देश है । राम-नाम लो और तैयारी करो । इतिहासकारोंकी लाता है ? जो जातियाँ चल बसी हैं उन्होंने भीष्म सम्मति है कि अब आगे इममे कुछ नहीं बनेगा-ऐमी पितामहकी नरह मृत्य-शैख्यामे हमारे लिए क्या दशामें हम उस पात्म-जीवन बूटीके लेनेको हिम्मतकी संदेश छोड़ा है ? जिन जातियोंकी भाज सब तरहसे कमर बाँधकर चले हैं, जिससे हमारी जाति पुनः जीविन चलती है उनकी मिसालमे हमको क्या शिक्षा मिलती हो । हनुमानजी ने एक लक्ष्मणजी के लिए पहाड़ उलट है ? जातीय उन्नतिके एक मोटे सिद्धांत पर विचार डाले । हम क्या अपने हिन्दू बच्चों के लिए, जिनमें मे करना उचित मालूम देता है। सारे अंगों पर विचार एक-एक राम-लचमणकी तस्वीर है, मारी ज़मीनको करना असम्भव है। गागरमें सागरको क्योंकर बंद उलट पलट न कर देंगे कि उनकी बर्वादीके जो समान किया जा सकता है। दिखाई देते हैं उनको दूर किया जाय। "जातीय जीवनका एक बड़ा सिद्धान्त जातीय संसारके इतिहासके अध्ययनसे क्या सिद्धान्त इतिहासको जीवित रखना है।" मालम हुए हैं, जिन्हें पूर्व और पश्चिमके विद्वानोंने कुछ दक्रियान्मी पण्डित यों कहेंगे कि क्या बात अपनी किताबोंमें बयान किया है। जातीय उन्नतिके वताई है। जप नहीं बताया, तप नहीं मिखाया; श्राद्ध, नियम भूतकालके वर्णनों में छिपे हुए हैं। मरने नाले कर्म, पाठ भादि कुछ अच्छी तरकीब भी नहीं समझाई मर गये । परन्तु हमको जीवित रहनेकी तरकीव बना जिसमे जातिका बाम होता। यह क्या वाहियात गये हैं । जो कुछ मनुष्य जातिने किया है, उस दास्तान व्यर्थका सिद्धांत निकाला है। यह भी कोई का प्रवर अक्षर हमारे लिए पवित्र है, क्योंकि हम उसमे सिद्धांत है ! इसमें क्या खूबी है ! यह कौन सी जातीय और देशके भान्दोलनको सफलताके साथ बारीक बात है । दर्शन नहीं, वेदान्त-सूत्र नहीं, बनानेकी तदवीर सीखते हैं। योगाभ्यास नहीं, सर्व-दर्शन संग्रह नहीं। यह देख संसारका इतिहास क्या ही समुद्र है, जिसमें हेतुमद्भुतकी गणना किस रोगकी दवा है ! या भगणित जवाहर मौजूद हैं। जिन्हें बुद्धिमान गोताखोर मरघटकी सैर किस बीमारी के लिए बाभकारी निकालते हैं और अपनी प्रियतमा जातिके सम्मुख है। इतिहास क्या है, यही कि अमुक मरा, अमुक उपस्थित करते हैं। इन विचारों और सिद्धान्तोंको पैदा हुभा। प्रस्तु, भव मुदौंका या रोगा। स्यापे
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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