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________________ उस समय चेतन पात्माके स्वरूपका उसमें एक गांठत हो क्षण भरमें नेस्त व नाबूद कर सकते दम अभाव नजर आता है। इसलिये जीवको हैं। जीव या भात्मा शाश्वतिक और अमर है भूतजन्य या भूतमय कहना भ्रमसे खाली नहीं है। इसमें किसी भी भास्तिक दार्शनिकको लेशमात्र जीवास्तित्वको आस्तिकताकी कसौटी मान संशय नहीं है और होना भी न चाहिये। सभी लेनपर भास्तिकता और नास्तिकताके नाम पर दार्शनिकोंने जीव सिद्धि प्रबल प्रमाणोंसे की है। होनेवाले संसारके अनेक संघर्ष सरलतासे दूर अतः इस संसारको सुखमय स्वर्गीय बनानेके किये जा सकते हैं। आपसके वैमनस्य तथा घृण लिये हमें इसी श्रेयस्करी मान्यताको मास्तिकता भादि दोषोंका शमन इससे बहुत जल्द हो सकता की सची कसोटी सहर्ष स्वीकार कर लेना है । और भारतवर्ष पारस्परिक प्रेम-सूत्रमें सुसंवद्ध चाहिये। हो उन्नतिकी चरम सीमा तक पहुँच सकता है, वीरसेवामन्दिर, सरसावा, तथा गुलामी जैसे असम अभिशापको हम सुसं. होली है ! बच्चे न्याहें, बूढ़े व्याहें कन्याओंकी होली है। बेचें मुता, धर्म-धन खावें, ऐसी नीयत डोली है । संख्या बढ़ती विधवाओंकी, जिनका राम रखोली है !! भाव-शून्य किरिया कर समझे,पाप कालिमा धो लीहै ! नीति उठी, सत्कर्म उठे,ौ' चलती बचन-बसोली है ! उच-नीचके भेद-भावसे लुटिया साम्य हुबो ली है !! दुख-दावानल फैल रहा है, तुमको हँसी-ठठोली है !! रूढ़ि-भक्ति औ' हठधर्मीसे हुआ धर्म बस डोली है !! (४) नहीं वीरता, नहीं धीरता, नहीं प्रेमकी बोली है। सत्य नहीं,समुदारहृदय नहि,पौरुष-परिणति खो ली है! नहीं संगठन, नहीं एकता, नहीं गुणीजन-टोली है !! प्रण-दृढ़ताकी बात नहीं, समताकी गति न टटोली है !! हृदयोंमें अज्ञान-द्वेषकी बेल विषैली बोली है ! आर्तनाद कुछ मुन नहिं पड़ना, स्वारथ चक्की झोली है। भाई-भाई लड़ें परस्पर, पत अपनी सब खोली है! बल-विक्रम सब भगे,बनी हा ' देह सबोंकी पोली है !! उठती नहीं उठाए जाती, यद्यपि बहुती मां ली है। खबर नहीं कुछ देश-दुनीकी, सचमुच मी भोली है!! बाइस जैनी प्रतिदिन घटते, तो भी और नम्बोली है। इन हालों तो उननि अपनी गे जैनो । बस हो ली है!! बगवीर'
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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