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________________ अमेवात [काल्गुन पीर-निवाब सं० २०० प्रमाण न माननेवालोंको नास्तिक कहते हैं, वैसे अपने अदृष्ट-स्वोपर्जित पुण्य पाप कर्मस मरण ही दूसरे लोग भी वैदिक लोगोंको उनके अन्य व कर किसी एक मनुष्यादि गतिसे दूसरी देवादि शाख प्रमाण न माननेके कारण नास्तिक कह गतिमें जन्म लेता है. उसीको परलोक कहते हैं । सकते हैं, और प्रायः ऐसा देखा भी जाता यदि जीवास्तित्व भौतिक-जगतसे मिन और है । मुसनमान लाग कुरानकी बातों और शाश्वतिक न माना जायगा तो परलोक भादि मुस्लिम संस्कृतिसे बहिष्कृत सभी लोगोंको भी न बन सकेंगे; क्योंकि परलोक-गामीके अस्तिकाफ़िर-नास्तिक कहते हैं। दूसरे लोग भी कोई स्व होनेपर ही परलोक अस्तित्व बनता है। मिथ्यात्वी और कोई अन्य हीन शम्भके द्वारा हम देखते हैं कि जीवास्तित्वको मास्तिकता अपने मतके न माननेवाले लोगोंको कुत्सित की कसौटी मानने पर संसारकी जन-संख्याका बचनोंके द्वारा सम्बोधित करते हैं। इससे वेद- बहुभाग भास्तिक कोटिमें सम्मिलित हो जाता निन्दक अथवा वेद वचनोंको प्रमाण न स्वीकार है। बौद्ध दार्शनिकोंको नैराम्यवादी होनेपर भी करनेवाले दार्शनिकोंको 'नास्तिक' कहना बिलकुल एकान्ततः नास्तिक कहना उपयुक्त न होगाः क्योंकि युनिशून्य और स्वार्थसे अोतप्रोत जंचता है। बौद्धदर्शनमें भी सन्तानादि रूपसे जीवका मस्तित्व अतः वेद-वाक्य-प्रमाण न माननेसे भिन्न ही स्वीकार किया गया है, भले ही उनका वैसा नास्तिकताका कोई प्राधार होना चाहिये। मानना युक्तिसंगत न हो,पर जीव या पात्माका तो इस तरह ईश्वर-विश्वास और वेदवचन- अस्तित्व किसी न किसी रूपमें माना ही गया है। प्रमाण आस्तिकता की सची कसौटी नहीं है, इन चार्वाक दर्शन और इसीको शाखा प्रशाखारूप दोनोसे भिन्न ही आस्तिकता की युक्तिसंगत मन• अन्य दर्शन जो जीव-आत्मको पृथिवी, जल, अग्नि, को लगनेवाली कोई कसौटी होना चाहिये । मेरे वायु और आकाशसे भिन्न पदार्थ नहीं स्वीकार विचारसे तो भौतिक जगतसे भिन्न चैतन्ययुक्त करते, किन्तु इन्हीके विशिष्ट संयोगसं जीवकी मात्मा या जीवका मानना ही पास्तिकताकी सर्व- उत्पत्ति मानते हैं, उन्हें जरूर नास्तिक कोटिम श्रेष्ठ कसौटी, माधार या बुनियाद है । इससे सम्मिलित किया जा सकता है। प्रत्यक्षसे ही हमें भिन्न मास्तिकताकी जितनी परिभाषायें देखनेमें देहादिसे भिन्न सुख-दुःखका अनुभव कर्ता मालूम भाती हैं ये सभी अधूरी, असंगत और सदोष होता है। जो अनुभव करता है उसीको जीव मालूम होती हैं । जीवका अस्तित्व स्वीकार करने कहते हैं । मरनेके बाद पंचभूतमय शरीर मौजूद पर ही ईश्वर विश्वास, वेद-वाक्य प्रमाण आदिकी रहनेपर भी उसमें चेतनशक्तिका प्रभाव देखा चर्चा बन सकती है। बिना जोवर्क उक्त समस्त जाता है। जब तक देहमें आत्मा विद्यमान रहता कथन निराधर और निष्फल प्रोन होता है। है तभी तक उसकी क्रियायें देखनमें आती हैं। मदृष्ट-पुण्य-पाप और परलोककी कथनी नी जीव चेतन शक्ति बाहिर निकल जानेपर मिट्टीकी हेतुक होनेसे जीवास्तित्व पर ही निर्भर है। जीव तरह केवल पुद्गलका पिरत ही पड़ा रहता है।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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