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सरल योगाभ्यास
के अन्दरकी प्राण-प्रथिका प्रदेश एक अजब प्रकारका गई है । जो ईश्वर-प्रेममें लीन रह सकते हैं वे प्रेमके कार्य करने लग जाता है, जिसस जिजीविषाकी वृद्धि सम्पूर्ण लाभ ईश्वरप्रेमसे ही प्राप्त कर लेते हैं। प्रेमका होती है। प्रेमीके सहवास में सूखी रोटी भी मीठी लगती असर चाहे वह किसी प्रकारका क्यों न हो स्वास्थ्य और है, प्रेमके भावसे परोसा अन शुभ परिपाकको प्राप्त मनपर एक ही प्रकारका होता है। होकर शुभ भावोंको प्रदीप्त करने में बड़ा उपयोगी होता ईश्वरीय प्रेम निरंकुश और स्वतंत्र है. परन्तु अन्य है। इन भावोंके कारण मन अनेक सुखानुभव करताहै, प्रेम अन्य व्यक्तिपर श्राश्रित है। ईश्वरीय प्रेम प्रत्यचर जिससे शरीरका प्रत्येक अवयव संतुष्ट होता है और की प्राशा नहीं रखता, परन्तु अन्य प्रकारका प्रेम प्रत्यअपना काम अच्छी तरह करता है।
तरके बिना नष्ट हो जाता है। इस प्रकारके असंवा इससे पचनेन्द्रियों तथा अनेक सचालक मस्तिष्क प्रेमका असर शरीरपर सतुष्ट प्रेमसे ठीक उल्टा पड़ता के अवयवों पर गहरा लाभदायक असर होता है। इस है। अधिकाँश विधवायें बिना किसी कारण प्रकार शरीरकी प्रत्येक शक्ति वद्धिंगत होती है। रक्त. यकृत, हृदय, और फुप्फुसकी बीमारियोंसे पीडित रहती मांस, मेद, अस्थि, मजा शुक्र और ज्ञानततु पुष्ट होते हैं, इसका कारण असंतुष्ट प्रेम है--वे बेचारी पतिप्रेम हैं और शरीर देखने में सुदर और मधुर हो जाता है। को ईश्वरप्रेममें लीन नहीं कर सकतीं । इसी प्रकार यकृत, पित्ताशय, और स्थलांत्र पर भी प्रेमका बड़ा पुरुष भी असंतुष्ट प्रेमके कारण अनेक बीमारियोंके लाभकारी असर पड़ता है। अनेक यकृत और स्थलांत्र शिकार होते हैं और इंग्लैंड वगैरह देशोंमें तथा भारत के रोगी विवाहसे अच्छे हो गये हैं । उत्कृष्ट और पवित्र में विवाहितोंकी अपेक्षा कुआरों की अधिक मृत्यु संख्या प्रेमका असर हृदयकी बीमारियोंको दूर करने में दिव्योपधि होनेका कारण भी यही है। असतुष्ट प्रेम अात्महत्याकी के रूपमें होता है । मंदाग्नि और पाचन क्रिया के अनेक प्रवृत्तिको उत्तेजित करता है। रोग शीघ्र ही दूर हो जाते हैं।
प्रेमके विकामका राजमार्ग तो विवाह ही है ।अन्य ऊपरके वर्णनको पढ़कर कोई यह न समझले कि मार्ग माधारण लोगकि लिए मुलभ नहीं है, परन्तु इस ये सब फायदे प्रेमके न होकर वीर्यपातके हैं। ऐमा म- में एक बड़ी भाग अड़चन है। अनेक बार मनध्य इस मझना नितान्त भल तथा भ्रम होगा क्योंकि वीर्यपातसं से तीन मोहमे पड़ जाना है और विषयोंका गुलाम हो इन फायदोंमें उलटी कमी होने लग जाती है और प्रेम- जाता है । विवाह विषय-वामनाओं को जीतने का निर्विके अच्छे असरको वीर्यपातका बुग अमर नष्ट कर देना कार बनने का--मागं होना चाहिए, न कि नारकी होनेका है। यही कारण है कि जो दम्पति शुरूमें फायदा उठाते इम अवस्था में इन्द्रियां किम प्रकार सम्पूर्ण रीतिसे जीती हुए मालम पड़ते थे वे ही धीरे धारे रोगी और दुर्बल जा सकती हैं तथा नाडि-नन्तुमि प्रेमकी विद्यत् उत्सन हो जाते हैं। जिन दम्पतियोंमें असली प्रेम न होकर कर किम प्रकार आध्यात्मिक लाभ उठाया जा मकता विषयोंका प्रेम होता है उनकी भी यही दशा होती है । है, इस पर आगे के लेखमें विचार किया जायगा तथा परन्तु अनेकबार प्रेमका फायदा अन्य प्रकारके नुक- गजयोग, लययोग और हठयोगकी कुछ क्रियाएं भी सानोंकी अपेक्षा अधिक भारी होने के कारण वीर्यपातका बनाई जाएगी। यहाँ पर एक सूचना कर देना चाहता नुकसान नहीं मालूम होता। प्रेमसे अधिकतम लाभ हूँ और वह यह है कि पाठक यदि विवाहित हो तो उठानेके लिये ब्रह्मचर्यसे रहना ज़रूरी है। प्रेमके बंधन- देखें कि बीच बीचमें कुछ दिनके लिये अपनी स्त्रीको में बंधे हुए स्त्री-पुरुष पूर्ण नैष्ठिक ब्रह्मचर्य रखने हुए' उमके मायके भेज देनेमे किम प्रकार उनमें प्रेम तीन उपयुक्त फायदे अधिकतम मात्रामें प्राप्त करते हैं। होता है और निर्विकारता थाती है । मालमें ऐसा २-३ जिन मनुष्यों की प्रकृति उन्हें ईश्वरप्रेममें लीन नहीं होने दफे एक एक दो दो महीने के लिये करना अच्छा है। देती उनके लिये ही इस प्रकारके प्रेमकी व्यवस्था की इससे प्राध्यात्मिक प्रेम भी बढ़ेगा।