________________
सरख योगाम्यास
किमी ग्रन्थम नहीं देखी; क्योकि योगग्रन्थों में अधिकांश सुखरूप अनुभव करता है। बातें गुरुगम्य और अनुभवगम्य ही रक्खी गई हैं; पढ़ राजमिक निद्रामें स्वप्न देखता है परन्तु इन स्वप्नों कर कोई अभ्यास नहीं कर मकता तथा राजयोग के मच्चे में वह दृष्टा स्वप्न लोकके सृष्टाके रूपमें होता है और गुरु मिलना एक तरहसे असंभवसा है।
देख देखकर सुख-दुखका अनुभव करता है। ___ इस क्रिया के बतलाने के पहले निद्राका सूक्ष्म विश्ले- स्वप्ने स जीवः सुखदुःखभोक्ता स्वमाययाकरिता पण करना आवश्यक है। यह विश्लेपण माख्य परति- विश्वलोके। सं होगा।
--कैवल्योपनिषद् निद्रा तीन प्रकारकी होती है-मात्विक, गमिक अर्थात्-यह जीव स्वप्न में अपनी मायासे बनाये तामसिक । इन मब प्रकारको निद्राओंमें तमोगुणको हुए विश्लोक में सुख-दुःखका भोग करता है। प्रबलता रहती है । निममें मत्वगुणकी ही पूर्ण प्रबलता तामसिक सुषुप्तिमें मनुष्यको यह खयाल ही नहीं हो उमे योगनिद्रा कहते हैं, वह इन तीन प्रकारासे रहता कि मैं कौन हूँ और क्या कर रहा हूँ। उस समय जुदी है।
विषयों के अाक्रमण होने पर वह विमूद-जड़के समान मत्वगुण अात्माका चैतन्यगुण है, इसमें निर्मलता श्राचरण करता है। राजसिक सुषुप्ति में अच्छे बुरेका और व्यवस्थिति रहती है। रजोगुण क्रियाशीलताका कुछ ज्ञान रहता है परन्तु तामसिक निद्रामें वह नहीं गुण है और तमोगुण निष्क्रियता, जड़ता और अंधकार रहता । का गुण है।
सात्विक निद्राके बाद मनुष्यमें फुर्ती रहती है और जिम निद्रामे तमोगुणाका नम्बर पहला और सत्य- वह खुश होता है । राजसिक निद्राके वाद मनुष्य कुछ गुणका दुमरा होता है उसे मात्विक निद्रा कहते हैं। अन्यमनस्क रहना है तथा उसे विभाति के लिये अधिक जिस निद्रामें तमोगुणका नम्बर वही प्रथम, परन्तु रजो- सोने की आवश्यकता होती है। परन्तु तामसिक निद्राके गुणका नंबर दूमरा होता है उमं राजभिक निद्रा कहते बाद मनुष्यको ऐमा अनुभव होता है मानो वह किसी हैं, और जिसमें तमोगुण का नम्बर प्रथम नया दिनीय बजनदार शिलाके नीचे रात्रि भर दवा पड़ा रहा हो। दोनों ही रूप है उसे तामसिक निद्रा कहते हैं। योगग्रंथों में मनुष्य शरीरके तीन विभाग किये हैं, ____ मात्विक निद्राको सुषुप्ति कहते हैं, इसमें स्वप्न नहीं जिन्हें तीन लोकका नाम दिया गया है तथा कहा गया
आने तथा 'मैं हूँ' इसका मान रहता है तथा जीव है कि मन या लिंगात्माके सहित प्राण जिस लोकमें विभांति और सुखका अनुभव करना है:- जाते हैं श्रात्मा वहाँके सुख-दुःखोका अनुभव करता है। सुपसि काले साले वितीने समोमिभूतः सुखरूप- इस विषयमें योगमार्ग'-शीर्षक लेख देखें । स्वप्न के समय
प्राण इन भिन्न भिन्न लोकोंमें विहार करता है, जिससे -कृष्णयजुर्वेदीय कैवल्योपनिषद् । विचित्र विचित्र दृश्य देखता है:अर्थात्-सुषुप्तिके समयमें तमोगुणसे अभिभूत प्रथयो कीरति पर जीवस्ततस्तु पातं स विसिव । होकर सब कुछ विलीन हो जाता है और जीव अपनेको
-कैवल्योपनिषद