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________________ अनेकान्त [माघ, वीरनिर्वाण सं०२४६६ graphy) बतलाया है और रिजीकी सच्चरित्रता और धन्यवादके पात्र है। विद्वत्ताकी प्रशंसा करते हुए उनकी 'चैत्यवन्दना कुलकबत्ति' नामकी उपलब्ध रचनाका बड़ा ही गुणगान (६) सती मृगावती-लेखक; भँवरनाल नाकिया है। साथ ही, इस वृत्ति के कुछ वाक्योंका उल्लेख हटा । प्रकाशक, शकरदान भेरुंदान नाहटा । नाहटोंकी एवं उद्धरण करते हुए यह भी बतलाया है कि गवाह बीकानेर पृष्ठ संख्या, ४० । मूल्य, दो पाना। "जैन समाजमें परस्पर एकता और ममानताका यह एक पौराणिक प्राधारपर अवलम्बिन श्वेता. व्यवहार रहना चाहिये, इस बानका भी इन्होंने (सूरि- म्बर कहानी है और भगवान महावीरके समयादिके जीने) स्पष्ट विधान किया है जो वर्तमानमे जेनसमा- साथ सम्बन्ध रखती है। जको सबसे अधिक मनन और अनुसरण करने योग्य है। इस विषय में मार्मिक वान्मल्यवाले प्रकरणमें इन्होंने कहा है कि- जैनधर्मका अनुवर्तन करनेवाले (७) श्रीदेव-रचना- लेखक, कवि ला० हर जमराय जैन श्रीमवाल । मंशोधक, मुनि छोटे लाल सब मनुष्योंको परम्पर सम्पूर्ण बन्धुभाव और समान व्यवहारमे वर्नना चाहिये-चाई फिर कोई किसी भी ( पञ्चनदीय )। प्रकाशक, प्यारालाल जैन (मन्हाणी) __साइकम्पगंज, स्यालकोट शहर। पृष्ठ संख्या, १६८ । देश और किसी भी जानिमें क्यों न उत्पन्न हों। जो मूल्य, सजिल्दका 11) जिल्दका ११ रु.। कोई मनुष्य सिर्फ नमस्कार मंत्रमाग्रका म्मरण करता है वह भी जैन है और अन्य जनोंका परम बन्धु है और ___ इसमें मुग्यताये भवनवासी श्रादि चार प्रकार के देवोंका और गौणना तीर्थकर चक्रवर्ती श्रादि ६३ इमलिय उसके साथ किसी भी प्रकारका भेदभाव न रम्बना चहिये और किसी प्रकारका वर-विरोध न करना शलाका पुरुषांका वर्णन अनेक प्रकार छन्दाम दिया चाहिये ।' धार्मिक एकनाकी दृष्टि से विचार किनने है, जिनमें चित्र छन्द भी हैं । पद्योंकी कुल संख्या ४३ उदार और अनुकरणीय हैं। जिनकृशलमृरिकी चरण है। नाना छन्दोंकी दृष्टिय पुम्नक मामान्यनया अच्छा पजा करनेवाले भक्तजन यदि उनके इस कथनका बुद्धि है, विषय-वर्णन भा कुछ बुरा नहीं । भाषाका नमना पूर्वक अनुपालन करना. गरपजाका सबम उत्तम. फल जानने के लिये अन्नका छप्पयछंद निम्न प्रकार है. प्राप्त कर सकते है और कम कम अपने गच्छका तो जिसमें पुस्तक रचनका समयादिक भी दिया हुआ है। गौरव बढ़ा सकते हैं।" अठारह मय सत्तरेव पंचम थिनि मांहे। पुस्तकम चार उपयोगी परिशिष्शक माथ विशेष बुध जन उत्तर मान चन्द मुवमन उदाहे ॥ नामांकी सूची लगी हुई है, जिनमें पुम्नककी उपयो- कुशपुर वामी श्रीमवाल हरजम रचलानी । गिता बढ़ गई है। इनिहास प्रेमी विद्वानोंक लिये सुर रचना जिनधर्म पुष्ट समकिन रम भीनी ॥ पुम्नक पढ़ने नथा संग्रह करने के योग्य है । अपने पज्य- जिह मुन पठ चित अर्थ धर वढे शान मत बुद्ध । पुरुषों के इतिहासको इस तरह खोज स्यांजकर प्रकट कर- नमी देव अरिहन्तजा कर जोममकिन शुद्ध ॥८४३ ॥ नेके सरप्रयत्न के लिये बन्धुद्वय लेखक महोदय निःसन्देह
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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