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________________ वर्ग, निक) साहित्य परिचय और समालोचन स्वर्णयुग था और कर्मचन्द बच्छावत जैसे भावक उसमें तक कहा गया है और प्रमाणमें 'भरवास पतिं दृष्ट्वा' मौजूद थे।" नामका एक श्लोक उड़न किया गया है, जिसमें केश यह अन्य बहुतमे अन्धोंकी सहायतासे तैग्यार सहित विधवा मीको भी देखनेपर सब स्नान करनेकी हुधा है, जिनकी एक विस्तृत सूची साथ में दी गई है। बाढ कही गई है। यह लोक नाँका और किसका है, साथ ही श्री मोहनलाल देवीचन्द देशाई एवोर यह कुछ बनवाया नही-ऐसी हो हावत विवेचनमें बम्बईकी महत्वपूर्ण प्रस्तावनास भी अवहन जिमको उद्धत दूसरे पोंकी भी है। इसमें सकेशा विधवाको पृष्ठ संख्या और अन्त में पपोंपर अम्बरें देखने पर जिस प्राय अत्तकी बात की गई है वह जैन भाए हुए विशेष नामोंकी सचीको भी लिये हुए . नीति के साथ कुछ संगत मालूम नही होती। अस्तु, जिन सबसे प्रन्यकी उपयोगिता पर गई है। कागज, उक्त कुलकके विवेचनादिके अनन्तर पुस्तकमें विधवाछपाई. मफ्राई तथा जिल्द उत्तम है । मूल्य एक रुपया पर्सन्य' नामका एक स्वतंत्र निबन्ध दिया दुमा है, बहुत कम है और वह लेखक महोदयों तथा प्रकाशक जिसमें लेखकने अपने विचारानुसार विधवानों, घरवाजी की गुरुभक्ति एवं साहित्य प्रीतिको स्पष्ट घोषित बों तथा समाजको भी बातसी अच्छी शिक्षाएँ दी करना है, और साथ ही दमरोंके लिये मेवाभावमे कमी है। पुस्तकमे कभी कभी पर पपाईकी कुछ प्राधियाँ मुल्यका प्रादर्श भी उपस्थित करना है। खटकती हुईसी है। (४) विधवा कर्तव्य- लेखक अगरचंद ना- (५ ) दादा जी जिनकुशलार बक, पगहटा । प्रकाशक, शङ्करदान भदान नाहटा, नाहटोंकी रचंद नाइटा और भेवरयान्न बाहटा । प्रकाशक, सरगवाह, बीकानेर। साइज २०४३०,१६ पंजी। पर दान शु दान शुभराज नाहटा २०१६ मारमेनियन सीर, संख्या, ६२ । मूल्य, दो पाना । कताकना । पाइज, २० - ३०,६जी । पृष्ट संख्या सब मिनाकर १३.। मूल्य. चार भावा । इममें सबसे पहले 'विधवा-कुलक' नामका एक इसमें चिकमकी १४ वी शताब्दीक विद्वान आचार्य दशगाथात्मक प्राकृत प्रकरण भावार्थ नया विवेचनमहित दिया गया है। यह प्रकरण पाटनके भतार श्रीजिनकुशवमूरिका जीवन चरित्र निहामिक टिम नाडपत्रपर जिग्वा हुमा उपलब्ध हुआ है और इसमें वि.. ग्बोज माथ दिया गया है और उसमे मूरिजीको भनेक धवाओं को शान रक्षाकं लिये क्या क्या काम नहीं करने जीवन-घटनाग्री तथा अन्य रचनाअापर अच्छा प्रकाश चाहिये, इस विषयका अच्छा उपदेश दिया है। विवे पहना और कितना ही इनिहाम मामने भाजाना है चन कहीं कहीं पर मूलकी म्पिष्टिमं बाहर भी निकला इस पुम्नक की प्रस्तावना प्रमिद्ध ऐनिहामिक विद्वान् हुआ जान पड़ना है। जैसे केशोंका संस्कार अथवा पु- श्री जिनविजय जीका निधी हुई है, जिसमें प्रापने इस प्पादिय शृङ्गार न करनेकी बात कही गई थी, तब विवं. जीवन चरित्रको चमकारिक घटना मोम शन्य शुद्ध इ. चनमें "विधवाओंको केश रखने भी न चाहिय" यहाँ तिहासमिन जावनवर्णन || Din
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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