________________
वर्ष ३, किरण
गोम्मटसार एक संग्रह ग्रंथ है
गाथा भी उसमें नहीं है । इसके सिवाय,८७६ नं. की दिये हैं और फिर एक गाथामें उनके स्वभावको उदा. गाथामें ३६३मतोंका-क्रियावादी और प्रक्रियावादी अादि हरण द्वारा स्पष्ट किया है । इसके पश्चात् एक गाथाम केभेदोंका-और उसके बाद उनका संक्षिप्त स्वरूप १३ उत्तर प्रकृतियोंकी संख्या दी है और फिर प्राकृत गद्य गाथाओंमें दिया है, उसके अनन्तर दैववाद, संयोग- उनके नाम, भेद और स्वरूपको दिया है । अतः गोम्म वाद और लोकवादका संक्षिम स्वरूप देकर उनका टमार कर्मकाण्डकी अपेक्षा 'प्राकृत पंचसंग्रह' करेंमिथ्यापना बताया है । माथ ही, उक्त मतोंके विवाद साहित्य के जिज्ञासुओंके लिये विशेष उपयोगी मालम मेटनेका तरीका बताकर उक्त प्रकरण को समाप्त किया होता है। है । यह मय कथन प्राकृत पचभग्रहमें नहीं है। इममे गोम्मटसार कर्मकाण्डकी रचनापरमे एक बातेको मालूम होता है कि ये सब कथन श्राचार्य नेमिचन्द्रने और भी पता चलता है और वह यह कि इसमें अध:दूसरे ग्रन्थों पग्मे लेकर या मार स्वींचकर रखे हैं। करण, अपर्वकरण के लक्षणवाली गाथाएँ जो जीव
परन्तु गोम्मटसार-कर्मकाण्डकी एक बात बहुत काण्डमे दी गई हैं, उन्हें कर्मकाण्डमें भी दुबारा मूल ग्वटकती है और वह यह है कि गाथा नं० २२ में गाथाओं के माथ दिया गया है। इसके मिवाय, जो कर्मोंकी उत्तर प्रकृतियों की संख्या तो बताई है परन्तु गागाएँ कर्मकाण्डमें १५५ नं० से लगाकर १६२ तक उन उत्तर प्रकृतियों के स्वरूप और नाम श्रादि का क्रमशः दी हैं फिर उन्हीं गाथानोको ६१४ नं0 से लेकर हर कोई वर्णन नहीं किया गया है, निमके किये जानेकी नक दिया है, जिनमें ग्रंथमें पुनरुक्ति मालम होती है। ग्वाम जरूरत थी। हां, २३, २४ और २५ नं. की शायद लेम्वों की कृपास ऐमा हुश्रा हो। कुछ भी हो, गाथामि दर्शनावग्गण कर्म की नौ प्रनिगाभंग म्त्यान- परन्तु हम कर्मकाण्ड के मकानन करने में प्राकृतं पंचगृद्धि, निद्रा, निद्रा निद्रा, प्रचना बार प्रचना प्रचन्ना मग्रह' में विशेष मायना ली गई मालम होती है। इन पाँच प्रकृनियाँका म्यम्प जरूर किया है-शेपका क्योंकि पचमग्रहकी कुछ गाथाएँ कर्मकाण्डमे भी ज्यानहीं दिया । इम कमाको मत टीकाकारने पग की त्यो अथवा कुछ बड़े शब्द पग्निर्नन के माथ किया है । परन्तु प्राकृन प नभग्रहक 'प्रनि समय नन' उपनभनी हैं। उनमंग की गाथा यहा नमने के नामक द्वितीय अधिकाग्मे मंगलाचरण के बाद, कर्म गौर पर दी जानी है:प्रकनियोके दो भेद बनाकर पहले मलप्रकगियों के नाम परपडिहारमिमजाहलिचिकुलालभन्याराणं । ॐ कदलीघान मरणके कारणांका दिग्दर्शन कराने जह पदमि भावा नहवि य कम्मा मुणे यम्वा ।।
-ग्रा. पच म०२,३ वाली दो गाथाएँ प्राचार्य कुन्दकुन्दके 'भावपाहुई' में
पडपडिहामिमजाहलिचित्त कुलालभंडयागणं । २५, २६ नम्बर पर पाई जाती हैं। जनममे गोम्मटपार
जह एमि भावा तह विय कम्मा मुरंगवा ॥ कर्मकाण्डमें २५ नं. की गाथा संग्रहकी गई है। इस
-पा० २०, २१ गाथाको प्राचार्य वीरसेनने अपना धवला टीकाम भी
पपीण मंतराप :वघाए नप्पदोम गिरहवणे । 'उक्तं च रूपये दिया है और वह धवलाके मुद्रित भावग्णदुःयं भुमी बंधमधामणा पय ॥ अंशमै पृष्ठ २३ पर छपी है।
--प्रा. पच।०, ४, २००