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________________ भनेकान्त [माष, वीरनिर्वाण सं०२५५५ मालूम नहीं होता किन्तु यह एक सग्रह ग्रन्थ है,जिसका रचना सुमम्बद्ध जान पड़ती है और अपने विषयको उक्त प्राचार्यने चामुण्डरायके निमित्त संकलन किया पूर्णतया स्पष्ट करती है। अन्यमें प्रतिपादित विषयोंके था। गोम्मटसारके सकलित होने के बाद इसके पठन- लक्षण बहुत अच्छी तरह संकलित किये गये हैं जिनके पाठनका जैनसमाजमें विशेष प्रचार होगया और वह कारण यह ग्रन्थ सभी जिज्ञासुत्रोंके लिये बहुत उपयहाँ तक बढ़ा कि गोम्मटसारको ही सबसे पुराना कर्म योगी होगया है। यद्यपि श्वेताम्बरीय प्राचीन चतुर्थ अन्य समझा जाने लगा। किन्तु जिन . महा बन्धादि कर्मग्रंथमें भी इसी विषयका मंक्षिप्त वर्णन दिया हुआ प्राचीन सिद्धान्त प्रन्योंके आधारपर इसकी रचना हुई है परन्तु उसमें जीवकाण्ड जैमा स्पष्ट एवं विस्तृत कथी उनके पठन पाठनादिका बिल्कुल प्रचार बन्द हो यन नहीं और न उममें इस तरहके सुमम्बद्ध लक्षणोंगया और नतीजा यह हुआ कि वे धवलादि महान् का ही समावेश पाया जाता है । इसी लिये प्रज्ञाचक्षु सिद्धान्त अन्य केवल नमस्कार करने की चीज़ रह गये। पं०मुखलाल जीने अपनी चतुर्थकर्म ग्रंथकी प्रस्तावनामें इसी कारण इसे ही विशेष आदर प्राप्त हुआ और उन जीवकाण्डको देखने की विशेष प्रेरणा की है । अस्तु । सिद्धान्तग्रन्थोंकी प्राप्ति के अभावमें इन्हें ही मूल सिद्धान्त पंचसंग्रह और जीवकाण्ड अन्य सममा जाने लगा। इसी ग्रन्थके कारगा प्राचार्य नेमिचन्द्रकी अधिक ख्याति हुई और उनका यह मक- प्राकृन पंच मंग्रह के 'जीवप्ररूपणा' नामके प्रथम लन जैन ममाजके लिये विशेष उपयोगी सिद्ध हुमा। अधिकारकी २०६ गाथामिमे गोम्मटमार जीवकाण्डमें अस्तु, गोम्मटमारकी रचना के आधार के विषयमें कुछ १२७ गाथाएँ पाई जानी है। ये गाथाएँ प्रायः वे हैं विचार करना ही इम लेखका मुख्य विषय है। अतः जिनमें प्राण, पर्यामि श्रादिकं विषयों के लक्षण दिये सबसे पहले उसके जीव काँडके विषयमें कुछ विचार गये हैं। इन १२७ गाथाश्रोम १०० गाथाएँ तो वे किया जाता है। ही जिन्हें धवलामें प्राचार्य वीरमेनने उक्तं च रूपसे गोम्मटमारके जीवकाएडमें जीवोंकी अशुद्ध दिया है और निनका अनेकान्तकी गन तृतीय किरणमें अवस्थाका वर्णन किया गया है । गायाप्रोकी कुल 'निप्राचीन प्राकृत पचनग्रह' शीर्षकके नीचे परिचय संख्या ७३३ दी है । ग्रंथके शुरुमं मगलाचरण के बाद दिया जा चका है । शेष २७ गाथाएँ, और उपलब्ध चीस अधिकारोंके कथनकी प्रतिज्ञा की गई है. और उन होती है। अतः ये मच गाथाएँ श्राचार्य नेमिचन्द्रकी बीस अधिकारोंका-जिनमें १४ मार्गणाएं भी शामिल बनाई हुई नहीं कहा जा मकी। क्योंकि पचसंग्रह है-ग्रन्थमे विस्तार पूर्वक कथन किया गया है । साथ गोम्मटमारने बहुत पहले की रचना है। मालम होता है हो अंतर्भावाधिकार और श्रालाराधिकार नामके दो कि श्राचार्य नेमिचन्द्र के सामने 'प्राकृत पंचमग्रह' अधिकार और भी दिये गये हैं निमसे कुल अधिकागे- जरूर था और उमी परसे उन्होंने जीवकाण्डमें ये १२० की संख्या २१ हो गई है जिनमे गाथा ग्रीका और उन- गाथाएं उद्धृत की है। पनसंग्रहकी जो गाथाएँ जीवके प्रतिपाद्य विषयका सष्टीकरण, विचन पर्व संग्रह काण्डमें बिना किमी पाठभेद के या थोडसं साधारण बात ही अच्छे ढंगसे किया गया है। दमानिये हमकी बन्द परिवर्तनके साथ पाई जाती है उनमसे नमूने के
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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