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________________ गोम्मटसार एक संग्रह ग्रन्थ है [शक-पं० परमानन्द बैन शाची] विगम्बर जैन-सम्प्रदायके अन्यकर्ता प्राचार्योमें रूप दोनों भागोका संकलन करनेमें जिन प्रन्थोका उप प्राचार्य नेमिचन्द्र अपना एक महत्वपूर्ण योग किया गया है यद्यपि वे सभी मेरे सामने नहीं , स्थान रखते हैं । आप अपने समयके विक्रमकी ११वीं परन्तु उनमें से जो ग्रन्थ इस समय उपलब्ध है, उनके शतान्दीके एक प्रसिद्ध ग्रन्थकार हो गये हैं, और तुलनात्मक अध्ययनसे मालम होता है कि उक्त कारों धवल, महाधवल तथा जयधवल नामके महान् की रचनामें उन धवलादि सिद्धान्त अन्धोंके सिवाय, मिद्धान्त ग्रन्थों में निष्णात थे। इसीसे 'सिद्धान्त चक- 'प्राकृत पचसग्रह' से भी विशेष सहायता ली गई है। वर्ती' कहलाते थे । गंगवंशीय राजा राचमल्ल के इसके अतिरिक्त कर्मविषयक वा साहित्य भी संभवतः प्रधान सेनापति ममरकेशरी वीर मार्तण्ड आदि अनेक आचार्य नेमिचन्द के सामने रहा होगा जिस परसे उपाधियोंसे विभूषित राजा चामुण्डगयके श्राप विद्या- प्राचार्य पज्यपादवे अपनी 'सर्वार्थसिद्धि में कर्मसाहित्यसे गुरु थे। आपने उक्त तीनों सिद्धान ग्रन्थोंका और सम्बन्ध रखनेवाली ऐसी कुछ गाथाएँ 'उक्तच' रूपसे अपने ममयमे उपलब्ध अन्य कर्म साहित्यका दोहन या बिना किसी मकेन के उद्धृतकी हैं। क्योंकि माकरके जो गोम्मटसार म्प नवनीत निकाला है वह बड़े चार्य पूज्यपाद दाग उधृत गाथामिंगे कुछ गाथाएँ ही महत्वका है और श्वनाम्बर सम्प्रदायके उपलब्ध आचार्य नेमिचन्द्रने भी अपने ग्रन्थोमें संकलित की , कर्म ग्रन्थोंसे बहुत कुछ विशेषता रखता है । इम और अवशिष्ट गाथाएं उपलब्ध दि० कर्ममाहित्य में गोम्मटमारके पठन-पाठनकी दि. जैनममा जमे विशेष कही पर भी नहीं पाई जाती है । इसमें किमी ऐमे प्रथप्रवृत्ति है । आपने गोम्मटमार (जीवकाण्ड, कर्मकाण्ड) का अनुमान होना स्वाभाविक है जिमपरस ये गाथाएँ के भिवाय, त्रिलोकमार, लब्धिमारकी भी रचना की है पूज्यपाद और नेमिचन्द्रने उद्धृत की है। और यह भी और 'कर्म प्रकृति' नामका एक ग्रन्थ भी इन्हींका संभव है कि प्राचार्य नेमिचन्द्रने पूज्यपादके ग्रंथपरसे बनाया हुश्रा कहा जाता है, परन्तु वह अभी तक मेरे हो उन्हें लेलिया हो। देखनेमे नही आया। . . गोम्मटमारका गम्भीर अध्ययन करने और दूसरे श्राचार्य नेमिचन्द्र नेगोम्मटमार के जीवनकाण्ड और प्राचीन ग्रयोंके माथ तुलना करनेमे स्पष्ट प्रतीत होता कर्मकाण्ड नामक दोनो खण्डोमें पटग्बण्डागम-सम्बन्धी है कि गोम्मटसारको रचना करने में उन प्राचीन ग्रंको जीवस्थान, क्षुद्रबंध, बंध स्वामित्व, वेदना और वर्गणा परसे विशेष अनुकरण किया गया है। यहाँ तक कि इन पांच विषयोंका संग्रह किया है । इमी कारण उनके पयोंको ज्योका त्यो अथवा कुछ पाठ-भेदके साथ गोम्मटसारका दूमरा नाम ‘पंचमंग्रह' प्रयुक्त हुश्रा जान अपने ग्रन्थमें शामिल किया गया है। इसीलिये गोम्मट. पड़ता है । गोम्मटसारके जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड सार अन्य श्राचार्य नेमिचन्द्रकी बिल्कुल ही स्वतन्त्रकृति
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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