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[माष, वीर मिना सं० २०
पर्वकालीन और तत्कालीन स्थिति धर्मसेव, एवं जिगमा गणिक्षमाश्रयण चाद्रि कलेक
भगवान् महावीर स्वामी, सुधर्मा स्वामी और भाचार्यों द्वारा रचित कुछ ग्रंथ पाये जाते हैं। किन्तु म स्वामी के निवास परवात ही जैन भाचार खिमद पादिजो भनेक गंभीर विज्ञान भाचार्य वीरऔर जैन साहित्य-धारामें परिवर्तन होना प्रारंभ हो संवत् की इन प्रयोदय सताब्दियों में हुए हैं, उनकी गया था । जैन-पारिभाषिक माषामें कहें तो केवल ज्ञान कृतियों का कोई पता नहीं चलता है। इन महापुरुषोंने का सर्वथा अभाव हो गया था, और साधुओंमें भी साहित्यकी रचना वो भवरय की होगी ही; क्योंकि पाचार-विषयको लेकर संघर्ष प्रारंभ हो गया था; बैन-साधुनोंका जीवन निवृत्तिमय होनेसे-सांसारिक जो कि कुछ ही समय बाद भागे चलकर श्वेताम्बर- ममटोंका प्रभाव होनेसे-साग जीवन साहित्य सेवा दिगम्बर रूपमें फूट पड़ा । बीरसंवत्की दूसरी शताब्दि. और ज्ञानाराधनमें ही खगा रहता था। अतः जैन साके मध्य में अर्थात पीरात् १५६ वर्ष बाद ही भद्रबाहु हित्य वीर-निर्वाणके पश्चात् सैकडों विद्वान जैनसाधुओं स्वामी-जिनका कि स्वर्गवास संवत् वीरात् १७० माना द्वारा विपुलमात्रामें रचा तो अवश्य गया है, किन्तु वह माता-अंतिम पूर्ण श्रुतकेपली हुए । भुत केवल बैनेतर विद्वेषियों द्वारा और मुस्लिम युगको राज्य शान भी अर्थात् । पूर्वोका शान भी एवं अन्य मा क्रान्तियों द्वारा नष्ट कर दिया गया है-ऐसा निश्चगम शाम भी भववाहुस्वामीके पश्चात् क्रमशः धीरे धीरे यात्मकरूपसे प्रतीत होता है। घटता गया, और इस प्रकार वीरकी नववीं शताब्दि बौदधर्म और जैनधर्मने वैदिक एकान्त मान्यताओं सकके काल में याने देवदि समाश्रमबके काम तक पति पर गहरा प्रहार किया है और बौद-दर्शनकी विचार-प्रस्वल्पमात्रामें ही ज्ञानका अंश अवशिष्ट रह गया था। मानिसे तो ज्ञात होता है कि बौद-दार्शनिकोंने जैनधर्म हरिभद्र सूरिका काल वीरकी १३वीं शताब्दि है। इन भिऔर वैदिकधर्मको भारतसे समूल नष्ट करनेका मानो १३.. वर्षोंका साहित्य वर्तमानमें उपलब्ध संपूर्ण जैन बरचय सा कर लिया था, और विभिन्न प्रणालियों बादमयको तुलनामें पहमांशके बराबर ही होगा। यह द्वारा ऐसा गंभीर धक्का देनेका प्रयत्न किया था कि कचन परिमाणकी अपेक्षासे समझना चाहिये, न कि जिससे ये दोनों धर्म केवल नामशेषमात्र अवस्था में रह महत्वको एष्टिसे । पूर्व शताब्दियोंका साहित्य पश्चात् की जाय। इस गोश्यकी पूर्तिके लिये बौद साधु और शताब्दियों की अपेक्षासे बहुमहत्वशाली है, इसमें वो बौद्ध-अनुयायी जनसाधारणकी मंत्र, तंत्र औरमौषधि कावा ही क्या है।
मादि एवं धनादिकी सहायता देकर हर प्रकारसे सेवाइन प्रथम तेरह शताब्दियों के साहित्यमें से वर्तमान शुश्रुषा करने लगे, और इस सब जवसाधारणको में उपलब्ध छ मूब पागम, भद्रगहु स्वामीहत का उपदेश एवं सोम मादि भनेक क्रियाओं द्वारा बौदधर्म निक्तियाँ,मास्वामी त तपार्थसूत्र भावि ग्रंथ, पाद- की भोर भाकर्षित करने लगे। अशोक शादि जैसे शिवमूरिकी कुष सारांवरूप कृतियाँ, सिद्धसन दिवाकर समर्थ सम्राटोंको बौद बना लिया और इस तरह भूमि की रचनाएँ, सिंह पमाणमय सूरिका नपञ्चकवाल, वार कर बैदिक धर्म एवं जैनधर्म को हानि पहुंचाने और शिवमर्मसूरि, चंति, कालिकाचार्य, संघदास, बगे। वैदिक-साहित्य और जैन साहित्यको भी बाट