SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Regd. No. L. 4328 अन्धोंकी बस्ती- - -"माहिर" अकबराबादी] यह दुनिया भी इलाही किस कदर नादान दुनिया है । यहाँ हर चीज पर बातिल का इक नापाक परदा है ।। यहाँ हर वक्त जल्मोजोरका इक शग्ल जारी है । यहाँ खुश रहके भी इन्मान वक्फ आहोजारी है ।। यहाँ नादार को नादार कहना इक कयामत है । यहाँ कल्लाशको जरदार कह देना मुरव्वत है ।। - यहाँ जुहदो तकुद सको समझते हैं रियाकारी । यहाँ दींदारियोंका नाम है ऐने गुनहगारी ॥ यहाँ हर झटको सच और सचको मठ कहते हैं। यहाँ इन्सानियतकं भेसमें शैतान रहते हैं । यहाँ मुल्लाए मस्जिद ही है. टेकेदार जन्नतका । यहाँ इसके सिवा हासिल किसे है हक इबादत का ॥ यहाँ दिलदारियांका रूप भरती है जफाकारी । वही है यार सादिक जिसको आए कारे एय्यारी ॥ वही है दोश्त जो साथी हो शरले ऐशो इशरत में । जो नेकीकी तरफ ले जाए दुशमन है हकीकत में || यहाँ हसनको सब हंसते है बेकारोंकी किस्मत पर । मगर रोना नहीं आता है वचारांकी किस्मत पर ।। यहाँ की रीतको देखा यहाँको प्रीतको समझा। खुदाको भल जाए जो वही है आकिले दाना ।। चल इस बस्ती से ऐ'माहिर' यह एक अन्धोंकी बरती है। यहाँ हर गलको बढ़ चढ़ कर जवान खार उमती है ।। RAA वीर प्रेम याफ इडिया कनॉट मर्कर, न्यू देहलं.
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy