SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ যজুঃ গ দ্বি-ইজ্জীল্লা শ্বিল [सम्पादकीय] मोतो संसारमें बराबर संयोग-वियोग चला और उनका शुभ नाम है मुनिश्री 'चतुरविजय' जी ' करता है। हजारों मनुष्य प्रतिदिन जन्म लेते आपका जन्म प्राग्वाट (बीमा पोरवाड) जातिमें हैं और हजारों ही मरणको प्राप्त हो जाते हैं । जो बड़ोदाके पासके छाणी गाँवमें चैत्र शुक्ला प्रतिजन्मा है उसको एक दिन मरना जरूर है, ऐमा पदा विक्रम संवत १९२६ के दिन हुआ था । अटल नियम होते हुए किमीका भी वियोग कोई आपका गृहस्थ जीवनका नाम चुनीलाल था, माता आश्चर्यकी वस्तु नहीं और न वह प्राज्ञोंके दृष्टि- का नाम जमनाबाई ओर पिताका नाम मलुकचन्द कोणानुमार दुःख-शोकका विषय ही होना चाहिय, था। और भी आपके तीन भाई तथा तीन बहिने फिर भी जिनका सारा जीवन मेवामय व्यतीत थीं। करीव २० वर्षको अवस्थामें ज्येष्ठशुक्ला होता हो और जो खासकर साहित्य-संवाकं द्वारा दशमी वि० सं० १९४६ को आपने श्री विजयानन्द निरन्तर ही स्थिर लोकसेवा किया करते हों उनका मार ( आत्माराम ) जा के साक्षात शिष्यप्रवर्तक अचानकवियोग साहित्य प्रेमियों, साहित्य सेवियों, मुनि श्रीकान्तिविजयजीक पाम बड़ौदा रियामत माहित्यमे उपकन होनवालों एवं माहित्य संमार- के भाई नगरमें दीक्षा ग्रहणकी थी, और उमी को बहुत ही अखरता है, और इमलिय मभी उनके ममय आपका नाम 'चतुर्गवजय' रक्खा गया था। प्रति श्रद्धांजलि अर्पण करके अपनी कृतज्ञता व्यक्त दीतासे व आपकी शिक्षा गुजरातीकी प्रायः किया करते हैं । ऐसा ही एक कनव्य श्राज मरे ७ वीं कना तक ही हुई थी और उस समय आप मामन भी उपस्थित है जिसका पालन करता पुगनी गनि र हिमाकता में भी निपुण थे। हुआ मैं 'अनकान्त' क पाठकों को एक "म महान शेप मब शिक्षा आपकी दीनाके बाद हुई है, जिममाहित्य-मेवीका कुछ परिचय कराना चाहता हूँ का प्रयान श्रेय उक्त प्रवत्तकजी का है,जा आज भी जिनका हालम ही - १ली दिसम्बर मन् १९२६ को अपनी वृद्धावस्था में मौजूद है। आपने संस्कृत, ७७ वर्षकी अवस्थाम मंवा करने करने पाटन शह- प्राकृत, अपभ्रंश आदि अनेक भापायका तथा रमें देहावमान हुआ है। काव्य, छंद, अलकादि-विषयक कितने ही शास्त्रों___ माहित्यमवी दो प्रकारकं होने है, --एक वंजा का अभ्याम किया था। न्यायका भी थोडामा लोकोपयोगी नूतन पुष्ट माहित्यका मृजन (मांग) अन्याम किया था. ग्रामिक एवं शास्त्रीय विषयोंक करते है और दूसरे व जीएम पुगतन साहित्यका माथ सम्पन्ध रखनेवाले अनक प्रकरण ग्रन्थाका मंशोधन, मरक्षण, सम्पादन और प्रकाशन किया अध्ययन करके, आपने 3 कण्ठस्थ कर लिया करने है । जिन महानुभावका यहाँ परिचय कगना था और प्राय: सभी मुख्य मुग्व्य भागम ग्रंथांको है वे प्रायः दुमरी कोटिक माहिल्य-म वयोगम थे दग्य दाना था. ३ श्रामवादि विषयों में
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy