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________________ व ३, विरंग...] ज्ञातवंशका रूपान्तर जाटवंश बाट न हूणों की संतान हैं, और न शक युद्धग्रन्थों में लम्बे कद, सुन्दर हरा, पतली सन्दी सिथियनोंकी, किन्तु वे विशुद्ध आर्य हैं। ऊपरके नाक, चौड़े कन्धे, लम्बी मुजाएं, शेरकी सी कमर उखरण से यह पूर्णतया सिद्ध होजाता है, किन्तु और हिरनकीसी पतली टांगोंवाली जाति पकइससे भी अधिक गहरा उतरा जाय वो पता लाया है, (जैसी कि यह प्राचीन समयमें बी) चलता है, कि बेचारे हूणों और शकोंके आक्रमणों आधुनिक समयमें पंजाब, राजपूताना और का जबतक नाम-निशान तक न था, जाट उस काश्मीरमें खत्री, जाट और राजपूत जातियों के समय भी भारतमें आबाद थे। पाणिनी जो ईसा नामसे पुकारो जाती है। (पृष्ठ ३२) से, प्रायः ८०० वर्ष पहिले हुआ है उसके व्याकरण मिस्टर नेसफोल्ड साहबने यहांतक पोर (धातु पाठ) में 'जट' शब्द पाता है, जिसके कि देकर लिखा है :माने संघके होते हैं। पंजाबमें 'जाट' की अपेक्षा “If appearance goes for anything 'जट' अथवा 'जट्ट' शब्दका प्रयोग अबतक होता the Jnts could not but be Aryans." है। अरबी यात्री अलवरूनी तो यहाँ तक लिखता "यदि सूरत शकल कुछ समझी जानेवाली है कि 'श्रीकृष्ण' जाट थे। मि०ई० बी० हेवल चीज है. तो जाट सिवा मार्योंके कुछ और हो लिखते हैं: नहीं सकते।" "Ethonographin investigations भाषाविज्ञानके अनुसार जातियोंके पहचाननेshow that the Indo-Arjun type desc- की जो तरकीब है, उसके अनुसार भी जाट भार्य ribed in the Hindu epic-in tull. fair हैं। इसके प्रमाणमें मिस्टर सरहेनरी एम० इलि. complexioned, long heuded rice, यट के० सी० बी० "सिन्ट्रीब्यूशन मॉफ दी रेसेषा with narrow prominent noses, brond ऑफ दी नार्थ वेस्टर्न प्राविसंघ मॉफ इंडिया" shoulders, long arms, thin waista like में लिखते हैं:lion and thin legs like deer is now (uw a ra समयमा मैंने करांचीसे पेशावर तक it was in the earliest tiines) most यात्रा करके स्वयम अनुमद कर लिया है, कि जाट coufiued to Kashmere, the लोग कुछ खास परिस्थितियोंके सिवा अन्य शेष Punjab and Rajputaan und represen- जातियोंसे अधिक पृथक नहीं है। भाषासे जो ted by the Kattris, Jats. und Rajp- कारण निकाला गया है वह जाटोंके शुद्ध आर्यवंश uts. (Page 32) The History of Ary- में होनेके जोरदार पक्षमें हैं। यदि वे सिथियनtu Rule in India by F. B. Havell. विजेता थे, वो उनकी सिथियन भाषा कहाँके लिए अर्थात-मानवतत्त्वविज्ञानकी खोज पतलाती चली गई और ऐसा कैसे हो सकता है, कि है, कि भारतीय भार्यजाति जिसको कि हिन्द- अप आर्य भाषाको, जोकि हिन्दीकी एक शाखा
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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