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पांग, वीर नि: मं:४६६
वप ३, किरण
अनेकान्त
जनवरी १९४२
वापिक मूल्य ३
श्रीवाहबली स्वामी । इस कामदेवोपम स|बांङ्ग सुन्दर बलिष्ठ पुरुषने निदारुग कायक्लेशमें
वर्ष के वर्ष बिता डाले। | लोग देखकर हा हा खाते | थे और निस्तब्ध रह जाते ।य। उसकी स्पहरणीय काया मिट्टी बनी जा रही थी । त्रियां उम निनिमीलित नेत्र, मन-मौन, शिलाकी भांति वड़े हुए
पुन्प-पुंगव के चरगोको | धो धोकर वह पानी
अखिों लगाती थीं । उसके चरणाक पासकी मिटी प्रोपधि समझो नाती थी। पर वह सब श्रीस्ने विलग, अनपेन, मन्द-याख बन्द-मुख, । मलिन देह, कृश-गात, तपन्यामं लीन था ।
जैनन्द्र
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SANTORIEODANळापळालाAAIDNIECORROROTROPTOK.SECTIVOIREO सम्पादक
मचालकजुगलकिशोर मुख्तार
तनमुखराय जन र अधिष्ठाता वीर-सेवामन्दिर सरसावा (सहारनपुर) कनॉट मकस पो० बो० नं. ४६ न्यू देहली। भDEEPROMOTORSELORIORTORTONTROOMINORESIDEOHDHORROTEORATORTOTRAMODIVORDC
मद्रक बार प्रकाशक-अयोध्याप्रसाद गोयलीय ।
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