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________________ प्रातः स्मरणीय जगत्पूज्य परम योगिराज जैनाचार्य श्री मद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी विचित-अग्विल जैन ग्रन्थोंका मार सर्वस्व, अद्वितीय, अनपर्मय, विद्वजन प्रशमित मागधी (प्राकृत ) भाषाका एकमात्र विश्वमनीय विराट बहद्विश्वकोश . . रचना काल... अभिधान राजेन्द्र . मग काल... । मुद्रण काल रचना काल मं० १९४६-१६६०) म. १६६४-१९८० पृष्ठ मंग्ख्या १०,०००] (भाग १ मे ७ ) [शब्द माल्या ६०,००० कुछ विद्वानोके अभिप्राय पहिये : सर जॉर्ज ए० प्रियमन, के० मी० आई० ई० (इंग्लैण्ड):-.......... मुझे गरे जैन प्राकृत न अध्ययनमें इम ग्रन्थका बहुत माह्य हुवा है............यह विश्वकोश मदर्भ नथा आधार दिग्दर्शन के लिये अनि मूल्यवान तथा उपयोगी है।" प्रो० सिल्वन लेवी ( यूनिवर्सिटी ऑफ परिम, फ्रांम ):-.............यह ग्रन्थ पीटर्मवर्ग डिक्शनरीस भी बढ़कर उपयोगी है, इसमें आधार और अवनग्गीम मज पूर्ण शब्द मंग्रह ही कयल नही मिलना है, किन्तु उन शब्दोंके माथ मंबद्ध मनमतान्तर, इनिहाम नथा विचागंका पग-पग विवंचन भी प्राम होता है.. " प्रो. सिद्धेश्वर वर्मा, एम० ए० ( जम्मू-काश्मीर ):-...... ...इमम अाज तक ममारको मर्यथैव अज्ञात ऐमा अमूल्य अवतरण ग्रन्थाधारका बहुत बड़ा भण्डार भग पड़ा है।" हरेक यनिवमिटी, कॉलेज, विद्यालय. लायब्रर्ग, न भण्डार, विद्वान धनी लांग, गजा. महाराना के मग्रहमें अवश्य रग्बने योग्य है । मूल्य मम्पा मातों भागके ग्रन्थका केवल रु. १७५), अधिक ग्रन्यांके लिये तथा व्यापारियांके लिये हैकमीशनके लिये पत्रव्यवहार कीजिये। पता:-अभिधान राजेन्द्र प्रचारक संस्था, रतलाम (मध्य भारत)
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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