SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साहित्य परिचय और समाजोचन २०॥ है वहाँ इनके चित्र सबसे पहले तथा सर्वोपरि दिये जाने और संग्रह करनेके योग्य है। मूल्य ६) रुपया इतने चाहिये थे। आशा है ग्रन्थका दूसरा अंश प्रकाशित बड़े आकार और पुष्ट जिल्द सहित ग्रंथका अधिक नहीं करते समय इस बातका जरूर खयाल रक्खा जायगा। है । प्रथकी छराई-सफाई सब सुन्दर और मनोमोहक (२) श्रीमद्राजचन्द्र-(संग्रहग्रन्थ) मूल गुजराती है। गुजराती इस ग्रंथके कई संस्करण हो चुके हैं । लेखक, श्रीमद् राजचन्द्र जी शतावधानी सम्पादक और हिन्दीमें यह पहला ही संस्करण महात्मा गांधीजीके हिन्दी अनुवादक, पं० जगदीशचन्द्र, शास्त्री एम०ए०। अनुरोध पर अनुवादित श्रादि होकर प्रकाशित हुआ है। प्रकाशक, सेठ मणीलाल, रेवाशंकर जग जीवन जौहरी, और इसलिये हिन्दी पाठकोंको इममे अवश्य लाभ व्यवस्थापक श्री परमश्रुत प्रभावक मंडल, बम्बई नं०२ उठाना चाहिये। ग्रन्थ परसे श्रीमद्राजचन्द्र जीको भले बड़ा साइज पृष्ठ संख्या, सब मिलाकर ६४४ मूल्य प्रकार मममा और जाना जा मकता है। महात्मा मजिल्द ६) रु.। गाँधीजीके जीवन पर मबसे अधिक छाप आपकी ही ___ यह वही महान् ग्रन्थ है जिस परसे महात्मा गाँधीके लगी है, जिसे महात्मा जी स्वयं स्वीकार करते हैं। श्राप निग्वे हुए 'रायचन्द भाई के कुछ मस्मरण' अनेकान्तकी ३४ वर्षकी अवस्थामें ही स्वर्ग सिधार गये और इतनी गत ८ वी किरणमेश्री मद्राजचन्द्र नीके दो चित्रों महित थोड़ी अवस्था में ही इम मब साहित्यका निर्माण कर गये उद्धन किये गये थे और 'महात्मा गांधीके २७ प्रश्नोंका है, मिस श्रापकी बुद्धि के प्रकर्षका अनुभव किया जा ममाधान' श्रादि दूमरे भी कुछ लेग्न अनेकान्तमें ममय- मकता है। ममय पर दिये जा रहे हैं । इममें श्रीमद्राजचन्द्र जीके (३) त्रिभंगीसार-(हिन्दी टीका सहित ) मूल लिग्वे हुए श्रात्ममिद्धि, मोक्षमाला. भावनाबोध, अादि लेग्बक, श्रीतारातरा म्वामी, टीकाकार ब्रह्मचारी प्रन्थोंका और भम्पर्ण लेखा तथा पत्रांका तथा उनकी शीनलप्रमाद । प्रकाशक मेठ मन्नलाल जैन, मु. प्रागा. प्राइवेट डायरी अादिका मंग्रह किया गया है। माथमें मोद (गागर) मी० पी०। बड़ा माइज पृष्ठ संख्या, मब ५. जगदीशचन्द्र जी शास्त्री एम. ए. का लिखा हुआ मिलाकर १४४ मूल्य १) रु० । 'गजनन्द्र और उनका सक्षिप्त परिचय' नामका एक मूल प्रथकी भाषा न मंस्कृत है न प्राकृत और न निबन्ध भी लगा हुया है ही बड़ा ही महत्वपर्ण है और हिन्दी व्याकरणादिके नियमोम शून्य एक विचित्र जिमम कविश्रेष्ठ श्रीमद्राजचन्द्रकं जीवनका बड़ा प्रकारको विचड़ी भाषा है। मालूम होता है इसके अच्छा परिचय मिलना है । ग्रंथकं शुम्म एक विस्तृत लेग्वक किमी भी भाषा के पडित नहीं थे। उन्हें अपने विषय-मची महात्मा गांधी जीके द्वारा प्रस्तावना रूपमं मम्प्रदाय वालकि लिये कुछ-न-कुछ लिम्बनेकी निम्बे हुए, उक्त मंस्मरणों के पूर्व लगी हुई है और अंतमें जरूरत थी, इमलिये उन्होंने अपने मनके ममझौनके ६ उपयोगी परिशिप लगाए गये हैं. जिन मबम ग्रंथकी अनमार उम उक्त ग्विचडी भाषा में ही लिग्वा है । पद्योउपयोगिता बहुत बढ़ गई है । यह अथ बड़ा ही महत्व- के छन्द भी जगह जगह पर लिम्बित हैं । ७० शीतलरण है और इसमें अध्यात्मादि विषयों के ज्ञानकी विपुल प्रमादजीने मूलनयको ७१ गाथाओंमें बनलाया है । पामग्री भरी हुई है। ग्रंथ बार-बार पढ़ने, मनन करने परन्तु मलके मब पद्य गाथा छन्दमे नहीं है। ब्रह्मचारी
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy