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________________ बुद्धिहत्याका कारखाना अवतारवाद, भाग्यवाद और कलिकल्पना [ 'गृहस्थ' नामका एक सचित्र मासिकपत्र हालमें रामघाट बनारससे निकलना प्रारम्भ हुआ है, जिसके सम्पादक हैं श्री गोविन्द शास्त्री दुगवेकर और संचालक हैं श्रीकृष्ण बलवन्त पावगी। पत्र अच्छा होनहार, पाठ्य सामग्रीसे परिपूर्ण, उदार विचारका और निर्भीक जान पड़ता है। मूल्य भी अधिक नहींकेवल १॥) रु० वार्षिक है । इसमें एक लेखमाला “झब्बशाही” शीर्षकके साथ निकल रही है, जिसका पाँचवाँ प्रकरण है 'झब्बशाहीका बुद्धिहत्याका कारखाना' । इस लेखमें विद्वान लेखकने हिन्दुओंके अबतारवाद, भाग्यवाद और कलिकालवाद पर अच्छा प्रकाश डाला है। लेख बड़ा उपयोगी तथा पढ़ने और विचारनेके योग्य है । अतः उसे अनेकान्तके पाठकोंके लिये नीचे उद्धृत किया जाता है। -सम्पादक] मनुष्य-जीवनमें बुद्धिका स्थान बहुत ऊँचा है। बुद्धिकी शत्रुओंकी बुद्धिका नाश करते हैं, परन्तु अधर्म और सहायतासे मनुष्य क्या नहीं कर सकता। बुद्धिके अनाचारोंके प्रवर्तक झब्बलोग अपने स्वार्थके लिये प्रभावसे वह असम्भवको भी सम्भव बना देता है। अनन्त स्त्री-पुरुषोंकी बुद्धिहत्या कर डालते हैं। मार्य चाणक्यने कहा है: ____ यह हम कह भाये हैं कि, मनुष्य-जातिका ज्ञान एका कंवलमेव साधनविधौ सेनाशतेभ्योऽधिका। अभी अपूर्ण है और अपूर्ण ज्ञान कदापि भ्रान्ति-रहिन नन्दोन्मूलन-दृष्टवीयमहिमा बुद्धिस्तु मागान्मम ॥ नहीं होता। मानवी बुद्धिकी इसी दुर्बलतासे लाभ ___ मेरी बुद्धिकी शक्ति मौर महिमा नन्दवंशको जड़से उठाकर संसारमें अनेक लफंगे कब्बू निर्माण हो गये हैं। रखाब देने में प्रकट हो चुकी है । मैं अपने उद्देश्यकी मनुष्यों की भावश्यकताएं बहुत होती हैं और उनका सिद्धिमें बुद्धिको सैकड़ों सेनाओंसे बढ़कर समझता हूँ। पूर्तिके लिये वे ऐसे साधन खोजा करते हैं कि परिश्रम मेरा सर्वस्व भले ही चला जाय, किन्तु केवल मेरी बुद्धि कुछ भी न करना पड़े या बहुत कम करना पड़े और मेरा साथ न छोड़े। महाभारतमें लिखा है:- फल पूरा या आवश्यकतासे अधिक मिल जाय । जब शस्त्रैर्हतास्तु रिपवो न हता भवन्ति। उनकी बुद्धि चकरा जाती है और उन्हें कोई स्पष्ट मार्ग प्रज्ञाहतास्तु नितरा सुहता भवन्ति ॥ नहीं सूम पड़ता, तब वे उन मम्बुभोंके चारमें फंस शाबों के द्वारा काट गलनेसे ही शत्रुओं का संहार जाते हैं, जो सर्वज्ञ या लोकोत्तर ज्ञानी होनेका दावा नहीं होता, किन्तु जब उनकी बुद्धि मार डाली जाती करते हों। ऐसे भ्रान्त, भले और मोजे मनुष्योंकी बुद्धि है,तभी उनका पमा नाश होता है। गीतानेभी बुद्धि को वे अपने पसाये बुदि-हत्या कारखाने में इस प्रकार माशको ही मनुष्य के नाराका कारण माना है। राजनी- पीस डालते हैं कि संसारमें उनका कहीं ठिकाना ही विज्ञ चतुर पुरुष अपने देश या राष्ट्रकी भलाई के लिये रहवासा ।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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