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________________ भनेकान्त मार्गशीर्ष, बीर निर्वाय सं०२६॥ जीव पाचरणको 'ऊँच गोत्र' और नीचे भाचरण- अपनी बीसे संतुष्ट रहना. वेश्यागमन-परखी गमन न को 'नीच गोत्र' कहते है। ऊँचगोत्र-सूचक ऊँचे करना, पति बोम ब करना, दूसरेका हक (स्वत्व ) पाचरणको सम्यक् चारित्र, धर्माचरण बादि न मान- न दवा बैठना, बीकी शक्तिपे अधिक ब्याज न लेना, कर व्यवहार योग्य कुलाचरण, नागरिकका भाचरण या अति तृष्णा न करना, अपनेमे म सँभल सके ऐसे सभ्य मनुष्यका माचरण मादि माना है। और व्यापारादिको न बदाना भावि सहस्रों प्रकारके ऊँच नीचगोत्र-सूचक नीचे पाचरणको मिथ्याचारित्र, गोत्र सूचक म्यवहारयोग्य सभ्य कुलके ऊँचे पाचरण अधर्माचरण चादि न मानकर खोटा लौकिक प्राचरण, है। और गर्वोन्मत्त होकर निरपराधोंको मार डालनालोकम्यवहारके अयोग्य आरकेतोंका निच आचरण काट डालना उन्हें मताना, अनेक प्रकारके कष्ट देना या असभ्य मनुष्योंका भाचरण मादि माना है। और उनका चित्त दुखाना, गुरुजनोंका अपमान तिरस्कार ऐसा मानकर सम्यक् चारित्र, धर्माचरण और व्यवहार करना, दूसरेकी धरोहर हरूप जाना, पण लेकर नहीं योग्य कुलाचारण पा सभ्य मनुष्यके भाचरणमें तथा देना, अधिक तौलकर खेना तथा कम तौल कर देना, मिण्याचारित्र, अधर्माचरण और ठग-रकेतोंके निया चोरी करना. डाका डालना, किसीका धन ठग लेना, परयया असभ्य मनुष्यके आचरणमें भेद व्यक्त किया मठ बोलना. मठी साची देना. दसरेसे विश्वासघान है। और इस तरह पर ऊंचे पाचरणका अर्थ व्यवहार- करना, बचन देकर नट जाना, ऐसी बात कहना जिससे योग्य कुलाचरण और नीचे माचरणका अर्थ ग- दसरा संकट में पड़ जाय, पुत्र-भाई-नानेदार पहोमी मित्र रकेतोंका निध कुलाचरण लगाया है। अर्थात् उपर्युक्त माविकी खियोंमे बलात्कार व्यभिचार करना, परखी. अभिप्राय निकाला है। विधवा दासी वेश्यादिको घरमें डाल लेना या उनमे परन्तु यदि देखा जाये तो संसारमें दो ही प्रकारके छिपकर अथवा प्रकट रूपमें व्यभिचार करना, अनि भाचरण एष्टिगोचर होते हैं--एक संयमाचरण और तृष्णा व भति लोभ करना, दूसरेके धनको-रहने के दूसरा मसंयमाचरण । बोकम्यवहार-योग्य मभ्य कुलके स्थानको शाप जाना, अधिक व्याज लेना, अपनेमे न मनुष्यके भाचरणको संयमाचरण अर्थात् उंचा भाचरण संभल सके इतने व्यापार यन्त्रालयादिको बढ़ाते जाना कहते हैं और खोकम्पवहारके अयोग्य असभ्यकुलके ठग- आदि सहस्रों प्रकारके नीच गोत्र सूचक व्यवहार के रकेतोंके निध भाचरणको असंयमाचरण अर्थात् नीचा भयोग्य असभ्य ठग डकेतोंके निच कुलके नीचे पाचरण पाचरण करते हैं। जैसे माता पितादि गुरूजनोंकी सेवा हैं। व्यवहारयोग्य मम्म कुलाके मनुन्यों में कम त्याग व नगा, रोगियों को पौषधि चादि देना, असमर्थदीनोंकी कम संघम होता है और प्रती भावक मुनियों में कई प्रकारसे सहायता करना, किसीकी धरोहर उसे अधिक त्याग अधिक संवम वा पूर्व संधम होता है, वैसीकी वैसी वापस देना, पण खेबर पूरा चुकाना, और इसी तरा पर बग-केतोंके असभ्य मुखवाखोंमें मक परे तौबसे देना तथा वैसे ही पूरा खेना, कह नहीं अधिक भसंघम व पूर्व संगम होता है। और इस पोवना, मुली सानी नहीं देवा, किसीको पक्षण देकर तर पर व्यवहार पोन्य सम्म जमावरवर पांव विभागा, सरेकी बीको माता-बहिन या बेटी समम्मा, एकही पात वा सम्म कुलाचरण प्रसंचमा
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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