SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अहिंसाकी कुछ पहेलियाँ [ी. किशोरखाच मशरू बाबा] बाहिंसाके बारे में कभी-कभी गहरे और जटिल सवाल सालके इतिहासमें उसमेंसे एक भी गामा या राममूर्ति किये जाते हैं। इनमेंसे कुछका मैं यहाँ थोड़ा भले ही न निकला हो । इन अखाड़ोंमें गामा और विचार करना चाहता हूँ। राममूर्तियोंका सम्मान, तथा मार्गदर्शनकी हैसियतसे (१) प्रश्न-पूर्णतया प्राप्त किये बगैर संपूर्ण उपयोग हो सकता है। लेकिन उन जैसा बननेकी अहिंसा शस्य नहीं है। तो फिर, सारे समाजको या सबकी महत्वाकांक्षा नहीं हो सकती। उसके उस्तादके हमारे जैसे अपूर्ण व्यक्तियोंको अहिंसाकी सिद्धि किस लिए भी वह कसौटी नहीं हो सकती। तरह मिल सकती है? दूमरा भी एक उदाहरण ले लीजिए । मेनापनिमें उत्तर-कभी कभी बहुत गहरे विचार में उतर मानेबुद्ध-शास्त्रकी जितनी काबिलियत चाहिए उतनी हरेक से हम गगन-विहारी बन जाते हैं। कसरत करनेवाला छोटे अमलेमें, तथा छोटे अमलेकी जितनी काबिलियत हरेक व्यक्ति दौड़ती हुई मोटर रोकने, या चार-पाँच सामान्य सिपाहियोंमें हो, ऐमी अपेक्षा कोई नहीं करेगा। मनका पत्थर छाती पर रखने या गामाकी बराबरी करने उसी तरह गांधीजीकी अहिंसावृत्ति हरेक कार्यकर्ता की शक्ति प्रास नहीं कर सकता । फिर भी, यह मुमकिन अपनेमें पा न सके, अथवा कार्यकर्ताकी लियाकत है कि इन लोगोंमें भी बढ़कर कोई पहलवान दुनियाँमे साधारण जनतामें श्राना संभव न हो, तो इसमे घबपैदा हो। अगर इन्हींको शारीरिक शक्तिका श्रादर्श रानेकी कोई बात नहीं। उससे उल्टी स्थितिकी अपेक्षा माना जाये तो साधारण प्रादमी--चाहे वह कितनी भी करना ही ग़लत होगा । जरूरत तो यह खोजनेकी है कि मेहनतसे शरीरको मजबूत बनानंकी कोशिश करे, तो अहिंसाकी कम से-कम तालीम कितनी और किस भी-अपर्ण ही रहेगा । तब क्या श्राम जनताके लिए तरहकी होनी चाहिए ! उससे अधिक लियाकत रखनेजो अखाड़ेवे बन्द कर दिये जाये ? उत्तर साफ है वाला मनुष्य एक छोटा नेता. या गांधी, या सवाई कि 'नहीं' । क्योंकि अखाड़ोका मुख्य उद्देश्य गामा जैस गांधी, मी बन सकता है। वैसी सदभिलाषा व्यक्तियों के पहलवानोंको ही निर्माण करना नहीं है, बल्कि साधारण दिलमें भले ही हो, लेकिन जो उस तक नहीं पहुँच दुनियादारीमें सैकड़ों श्रादमियोंको जितनं और जिस सकता उसे निराश होनेकी जरूरत नहीं। उसके लिए प्रकारके शारीरिक विकासकी जरूरत हो उतना और परीक्षाकी कम-से-कम लियाकत हासिल करनेका ही उस प्रकारका विकास जो व्यायामशाला करा सकती ध्येय रखना काफी है। है उसे हम सफल संस्था कहेंगे; फिर चाहे उसके सौ (२) प्रश्न-जिसे क्रोध प्राता हो, जो गुम्से में
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy