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बंगीय - विद्वानोंकी जैन - साहित्य में प्रगति
[ ० - श्री अगरचन्द नाहटा ]
और
भारतके
अन्य प्रान्तोंकी अपेक्षा बंगालप्रान्तमें शिक्षाप्रचार अत्यधिक है । साहित्य के प्रत्येक क्षेत्र में बंगीय विद्वानोंने जैसा उत्तम और अधिक कार्य किया है वह सचमुच ही बंगालके लिए गौरवकी वस्तु है । विश्वकवि - रवीन्द्रनाथ, महान् उपन्यासकार - स्वर्गीय किमचन्द्र चटर्जी और शरत बाबू, पुरातत्त्वविद् सर श्री जदुनाथ सरकार; महान् वैज्ञानिक सर जगदीशचन्द्र वसु, श्राचार्य प्रफुल्लचंद्रराय और मेघनाद शाह, महायोगी स्वर्गीय रामकृष्ण, विवेकानन्द और अरविन्द घोष, त्यागवीर स्वर्गीय देशबन्धु चितरञ्जनदास, देशसेवक भूत पूर्व राष्ट्रपति सुभाषचन्द्र बोम, महान् कानूनवेत्ता रासविहारी घोष, परमसंगीतज्ञ तिमिरवर्ण, गिरिजाशंकर चक्रवर्त्ती, भीष्मदेव चटर्जी, ज्ञानेन्द्र गोस्वामी; ललित नृत्यकार विश्वमुग्धकर उदयशंकर भट्ट; समाज संस्कारक राजा राममोहन राय, केशवचन्द्रसेन और ईश्वरचन्द्र विद्यासागर इत्यादि नररत्नोंने अपनी असाधारण प्रतिभाद्वारा विश्व में बंगभूमिको गौरवान्वित कर दिया है। केवल बंगाल ही क्यों समस्त भारतभूमि इन महापुरुषोंको जन्म देकर सौभाग्यवती हुई है । विश्व इन महापुरुषोंके कार्यकलापों द्वारा चकित एवं मुग्ध है ।
दार्शनिक चिन्तामें भी बंगीय विद्वानोंने अपनी बौद्धिक शक्तिका अच्छा परिचय दिया है। जैनदर्शन भारतीय दर्शनोंमें प्रधान और मननीय उत्कृष्ट दर्शन है । अतः बंगीय विद्वानोंका इस ओर ध्यान देना सर्वथा उपयुक्त है । किन्तु साधनाभाव के कारण उनकी ज्ञान
पिपासाने प्रबलरूप धारण नहीं किया। इसबार कलकचेमें मुझे अनेक विद्वानोंसे साक्षात्कार होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । उन लोगोंसे वार्त्तालाप होनेपर सभीने एक स्वरसे यही कहा कि "जैनदर्शनके सूक्ष्म तत्त्वोंको जानने की हमें बड़ी उत्कण्ठा है पर क्या करें ? साधन नहीं मिलते !" इन शब्दों को श्रवण कर मेरे हृदय में गहरी चोट लगी पर करता क्या ? बंगीय जैनसमाजने श्रभी तक एक भी ऐसा श्रायोजन नहीं किया कि जिसके द्वारा साहित्यिक सामग्री जुटाता और उसे लेजाकर बंगीय विद्वानोंको देता, जिससे वे अपनी जिज्ञासाकी प्यासको बुझाने, श्रस्तु |
अब 新 उन बंगीय विद्वानोंके वियमें लिखता हूँ जिन्होंने समुचित साधन नहीं मिलने पर भी अपनी श्रपूर्व कर्मठवृत्ति द्वारा जैन साहित्य में अच्छे अच्छे कार्य किये हैं । ये विद्वान जैनधर्मके पूर्ण अनुरागी हैं। इनके विषय में मैंने जो कुछ खोज की है, जिन जिनसे व्यक्तिगत वार्त्तालाप हुआ और उनके कार्यका परिचय मिला है उसीके श्राधार पर संक्षेपमें इस विषय में लिख रहा हूँ ।
१ श्रीयुत हरिसत्य भट्टाचार्य M. A. B. L. वकील हवड़ाकोर्ट
( पता - नं ० १ कैलाशबोस लेन; हबड़ा ) जैन साहित्यसेवी बंगाली विद्वानोंमें आपका स्थान सर्वोच्च है । श्रापकी दार्शनिक श्रालोचनाकी शैली बड़ी ही हृदयग्राही और गंभीर | भारतीय दर्शनोंके प्रति