SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बौड तथा बैन ग्रन्थों में बीमा न कर सकूँगा। इमलिये वे एक दिन रातको उठकर कारण फिर अपने आँसुओंको नहीं रोक मकती, और बिना कहे ही घरसे चल दिये और हिमालय पहुँन कर 'घोडयन्वं जाया,जइयब्वं जाया,परिकमयर्थ जापा" तप करने लगे। अर्थात् संयममें यत्नशील रहना आदि शब्द कहकर भगवती मंत्र आदि श्वेताम्बर सूत्रोंमें इस प्रकार के यापिम चली जाती है. । हृदयस्पर्शी वर्णन अनेक स्थानों पर पान हैं। जामालि मालूम होता है इन्हीं सब बातोम महावीर और महावीरके दर्शन करने जाते हैं । दीक्षा लेने का उनका बुद्धको यह घोषणा करनी पड़ी कि बिना माना पिताकी दृढ़ निश्चय हो जाता है। हम निश्चयकी व घर अनुशाक कोई दीक्षा लेनका अधिकारी न हो सकेगा। श्राकर अपने माता पिनास कहते हैं। उनकी मां यह श्वनाम्बर ग्रंथों के अनुसार तो स्वयं महावीर भगवानको मुनने ही पछाड़ ग्वाकर ज़मीन पर गिर पड़नी है और भी अपने बंधु ननांकी श्राज्ञा न मिलनम, दीक्षा लेनेका बेहोश हो जाती है । जब वह अनेक उपचार करने पर मन होते हुए भी, कुछ ममय तक गृहवासमें रहना होशमें श्रानी है । उनको अपने पुत्रके निश्चय पर पड़ा । श्वेताम्बर ममा जमें नो दीक्षाके नाम पर पान अत्यंत दुःख होना है ।, जामालिके माना-पिना बहुत भी अनेक उपद्रव होने हैं। बड़ौदा प्रादि रियामतोंमें ममझाते हैं, परंतु जामालि अटल रहते हैं । दोनोंस बाल दीक्षा के विरुद्ध बहुतम कानुन बना दिये गये हैं। अनेक प्रश्नोत्तर होते हैं और आखिर जामालि अपने यहाँ हम एक ईमाई पादरीका पत्र उद्धृत करने है । निश्चयको मान्य रखते हैं। दीक्षाकी तैयारी बड़ी धम- जो ईमाइयोंकी साधुदीक्षा पर कितना ही प्रकाश डालता धामसे होती है । जामालिके लिये रजोहरग और पात्र है। यह पत्र इन पादरीने एक सजनको लिम्बा था जो लाये जाते हैं और एक नाईको बुलाया जाना है । नाई अपने स्वजनोंकी इच्छाके विरुद्ध साधु (Priest) होना मुगन्धित जलसे हाथ पैर धाता है और माफ कपडकी चाहते थे । वे जिन्वते हैंअाठ तह बना कर अपने मुँह पर रखकर जामालिक Even if your little nephew throws पाम पाता है । जामालि उसको चार अंगुल कंश छोड़ his arms round your neck. if your mo. कर दीक्षाके योग्य केश काटने को कहते हैं। नाई ther tears her hairand cloth and beats श्राशाका पालन करता है। उस समय क्षत्रियकुमार her breast which you, sucked even if जामालिकी माता भी वहाँ रहती है और वे श्रम कंशोको your father throws himself on the साफ वस्त्रमें ले लेती है, उनको गंधोदकसं धानी है ground before you-move, even the और पुत्र के वियोगके कारण बोबड़े मोतियोंकी लडी body of your father. hee with tearless जैसे सफेद बासू टपकाती हुई कहती है कि अनेक, eyes to the sign of cross. In this शुभ तिथियों और उत्सवोंके अवसर पर हम इन्हीं केशो case, crgelty is the only virtue. For को देखकर सन्तोष कर लिया करेंगे । जामालिकुमार, how. many monks have lost their:: पालकीमें बैठकर महावीर भगवान्के पास पहुँचन ।। suls because they md pity for their साप में माता बबुजम मी जाते हैं। मां पुत्र-वियगके ftahers and mothers."
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy