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अनेकान्त
[वर्ष ३, किरण १
गद्य सूत्रोंमें ही हुई है। परन्तु कहीं कहीं गाथा सूत्रोंका बिना नामके ही । ऐसी गाथाएँ बहुतसी 'उकं च' रूपसे भी प्रयोग किया गया है। जब कि कषायप्राभूतकी उद्धृत हैं जो गोम्मटसार' में प्रायः ज्योंकी त्यों तथा कहीं संपूर्ण रचना गाथा-सूत्रोंमें ही हुई है । ये गाथा- कहीं कुछ थोड़ेसे पाठ-भेदके साथ उपलब्ध होती हैं । सूत्र बहुत संक्षिप्त है और अधिक अर्थ के संसूचनको और चूंकि गोम्मटसार धवलादिकसे बहुत बादकी कृति लिये हुए हैं । इसीसे उनकी कुल संख्या २३३ है इसलिये वे गाथाएँ इस बातको सूचित करती हैं कि होते हुए भी इनपर ६० हज़ार श्लोक-परिमाण टीका धवलादिकी रचनासे पहले कोई दूसरा महत्वका सिद्धान्त लिखी गई है।
ग्रंथ भी मौजूद था जो इस समय अनुपलब्ध अथवा धवल और जयधवलकी भाषा उक्त प्राकृत भाषाके अप्रसिद्ध जान पड़ता है । ऐसा एक प्राचीन ग्रन्थ अभी अतिरिक्त संस्कृत भाषा भी है-दोनों मिश्रित हैं—दोनों उपलब्ध हुश्रा है, जिसकी वीरसेवामन्दिर में जाँच हो में संस्कृतका परिमाण अधिक है। और दोनोंमें ही रही है, वह ग्रंथकर्ताके नामसे रहित है। इस प्रकार उभय भाषामें 'उक्त च' रूपसे पय, गाथाएँ तथा गद्य- यह धवल और जयधवलका संक्षेप में सामान्यप रिचय है। वाक्य उदधृत हैं-कहीं नामके साथ और अधिकांश वीरसेवामन्दिर, सरमावा, ता० २०-११ १६३६
आवश्यक निवेदन निश्चित समय पर प्रकाशित करनेके लोभको सँवरण न कर मकने के कारण १५० पृष्ठ के बजाए इस विशेषांक में १४० पृष्ठ ही दिए जासके हैं । इम विवशताको लिए सहृदय पाठकोंके प्रति हम कुछ अपराधी ज़रूर हैं फिर भी इन दस पृष्ठोंकी पर्ति दूसरी किरणमें कर देनेकी आशा रखते हैं ।
विलम्बके ही भयसे इस किरणमें ऐतिहासिक जैन-व्यक्ति कोष, मम्पादकीय तथा अन्य आवश्यकीय उपयोगी लेख भी नहीं दिये जासके है । यदि कोई बाधा उपस्थित न हुई तो ऐतिहासिक जैन-व्यक्ति कोषको-जो पाठकों के लिए बहुत ही मननीय और अाकर्षक लेखमाला होगी--द्वितीय किरणसे क्रमशः प्रारम्भ करनेकी भावना है।
धवलादि श्रुत परिचयके ८ पृष्ठके बजाए १६ पृष्ठ के करीब इस किरणमें जारहे हैं और इस लेखमालाको भी स्थायी रूपमें क्रमशः देनेका विचार है । हमें हर्ष है कि हमारी इन योजनाओंका सहर्ष स्वागत हुआ है।
जैन लक्षणावलीके ८ पृष्ठ नमूने के तौर पर अन्तमें दिए गए हैं उससे पाठकोंको विदित होगा कि वीर सेवा मन्दिर में कितना महत्वपूर्ण और स्थायी ठोस कार्य हो रहा है। अब यह अनेकान्तमें प्रकाशित न होकर पुस्तक रूपमें कई खण्डोंमें प्रकाशित होगी।
अनेकान्तको इस द्वितीय वर्ष में जो भी सफलता प्राप्त हुई है उसका सब श्रेय उन आदरणीय लेखकों, जैनेतर संस्थानोको अनेकान्त भेट स्वरूप भिजवाने वाले दातारों, ग्राहकों और पाठकोंको है। उन्हीं के सहयोग और श्रमका यह फल है। हम भी उनकी इस महती कृपाके कारण अनेकान्तकी कुछ सेवा कर सकने में अनेक त्रुटियां होने पर भी अपनेको समर्थ पाते हैं ।।
--व्यवस्थापक