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अनेकान्त
[वर्ष ३, किरण
किस विषयका क्या कुछ लक्षण किम किम ग्रंथमें पाया - लब्ध हुए हैं, और इमलिए, उनके साथ दूसरे सम्प्रदायके जाता है और किम किसमें बह नहीं पाया जाना; क्योंकि लक्षणों को नहीं दिया जा सका है । यदि दूमरे मम्प्रदाय इम ग्रंथम प्रत्येक लक्ष्यक लक्षणोंका मंग्रहमें उपयुक्त हुए. के किमी अन्य ग्रंथम, जिमका उपयोग इम मंग्रहमें नहीं मभी ग्रंथांपरस एकत्र मंग्रह किया गया है, ग्रंथकार हो सका, उम लक्ष्यका लक्षण पाया जाता हो अथवा और ग्रंथके नाम के * माथ उनके स्थल का पता भी उपयुक्त ग्रन्थोमस ही किमीमें उपलब्ध होता हो और दे दिया गया है और लक्ष्य शब्दोंकी अकारादि-क्रमस दृष्टिदोष के कारण इस संग्रहमें छूट गया हो, उसकी रक्खा है, जिससे किसी भी लक्ष्य के लक्षणोंको मालूम सूचना मिलने पर उसे बादको परिशिष्टमें दे दिया करनेमें आसानी रहे । कुछ लक्ष्य ऐम भी है जो दूसरं नायगा। ग्रंथाम अपने पर्याय नाम उल्लेखित हुए हैं और उसी श्राज इम लक्षणावलीके 'अ' भागके कुछ अंशोको नामस उनका वहाँ लक्षा दिया है । उनके लक्षणोंको 'अनकान्त'के पाठकोंक मामने नमूने के तौर पर रक्वा यहां प्रायः उनके नामक्रम के माथ ही मंग्रह किया गया जाता है, जिसमें उन्हें इस ग्रंथकी रूप-ग्वाका कुछ है । हो, पर्याय नामवाले लक्ष्य शब्दको भी दम्बनका साक्षात अनुभव हो सके और वह इसकी उपयोगिता साथमें संकेत कर दिया गया है जैम 'अकथा' के साथ तथा अावश्यकताको भले प्रकार अनुभव कर मकें । में 'विकथा' को देखने की प्रेरणा की गई है।
माथ ही, विद्वानोंम यह नम्र निवेदन है कि वे लक्षगा कछ लक्षण ऐस है गी दिगम्बर ग्रन्थों में ही मिले बलाक इम पमं. जिममं वह प्रस्तुत की जानका है, हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो श्वनाम्बर ग्रंथामे ही उप यदि कोई ग्वाम त्रुटि देग्य अथवा उपयोगिताकी दृष्टिम
* ग्रन्थका नाम पूरा न देकर संक्षेपमें दिया गया कोई विशेष बात मुझाने की हो तो वे कृपया शांघ दा है। ग्रन्थोंके पूरे नामों भादिके लिये एक संकेत सूची सूचित कर अनगडीत करें, जिसमें उमपर ममांचन प्रत्येक खण्डमें रहेगी, जिससे यह भी मालूम होसकेगा विचार होकर प्रेमकापीके ममय यथोचित सुधार किया कि अन्य के कौनसे संस्करणा अथवा कहाँकी हस्तलिखित जामकं । विद्वानों कम दर परामर्शका हृदयम अभिप्रतिका इम संग्रहमें उपयोग हुआ है।
नन्दन किया जायगा और में उनकी इम कृया के निय __ पतेमें जहाँ एक ही संख्या दिया है वह ग्रन्थके बहन है। अाभारी हूंगा । पच अथवा सूत्र नम्बरको सूचित करता है,जहाँ दो संल्पाक दिये है वहाँ पहला अंक ग्रंथके अध्याय, परिच्छेदादिक- इम नमूनमें नहीं कहीं किसी लक्ष्य के लनगारन्तर का और दूसरा अंक पत्र तथा सूत्रके नम्बरका वाचक xxx ऐसे चिन्ह दिये गये हैं वहीं उनके बाद अनेक है. जहाँ तीन संपादिये है वहाँ दूसरा अंक मध्या. लक्ष्य शब्द तथा उनके लक्षण हे हुए हैं, जिन्इम पाविके भवान्तर भेद अथवा सूत्रका सूचक है और नमूनेमें उद्धृत नहीं किया गया । व अन्य प्रकाशिन होने तीसरा अंक पचवा सूत्रके नम्बरका घोतक है। और वाले प्रथम ग्वण्डम यथाम्यान रहेंगे । जहाँ 'पृ०' पूर्वक संख्या दिया है वह ग्रन्थके पृष्ठ नम्बरको बतलाता है।
-मम्पादक