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अनेकान्त
ssो अत्थो जन्भर जियाणा मंगहणमेतेण ॥१-३०॥ विग्नाः प्राणश्यन्ति भयं न जातु न दुष्टदेवाः परिलंघयन्ति अर्थाम्ययेष्टांश्च सदालभन्ते जिनोसमानां परिकीर्तनेन ॥ २१
अर्थात् — जिनेन्द्र भगवानके नाम लेने मात्रसे विघ्न नाश होजाते हैं, पाप दूर हो जाते हैं, दुध देव कुछ बाधा नहीं कर सकते हैं, इट पदार्थोंकी प्राप्ति होती है ।
इसके अलावा जिनेन्द्र भगवान की मूर्ति बिना प्रतिष्ठा के ही पूज्य है, इसके लिये हमको ग्रादिपुराण पर्व ४१ के श्लोक ८५ से ६५ तकका वह कथन पढ़ना चाहिये, जिसमें लिखा है कि, भरत महाराजने घंटांके ऊपर जिन
[ वर्ष ३, किरण १
बिम्ब अंकित कराकर उनको अयोध्याके बाहरी दर्वाजा और राजमहलके बाहरी दर्वाज़ोंपर लटकाया । जब व आते जाते थे तो उन्हें इन घंटोंपर अंकित हुई मूर्तियांक देखकर भगवानका स्मरण हो श्राता था और तत्र व इन घंटोंपर अंकित जिनबिम्बोंकी चंदना तथा पूजी किया करते थे । कुछ दिन पीछे नगर के लोगोंने भी ऐसे घंटे अपने मकानोंके बाहरी द्वारों पर बांध दिये, और भी उन पर अंकित जिन-बिम्बोंकी पूजा बन्दना करने लगे । इसमें स्पष्ट सिद्ध है कि भगवान की मूर्तियोंको प्रतिष्ठा कराने की कोई आवश्यकता नहीं है वे वैसे ही पूज्य हैं ।
विनयसे तत्वकी सिद्धि है
राजगृही नगरी राज्यासन पर जिस समय श्रेणिक राजा विराजमान था उस समय उस नगरी में एक चाण्डाल रहता था। एक समय इस चांडाल की स्त्रीको गर्भ रहा । चांडालिनीको श्रम स्वानेकी इच्छा उत्पन्न हुई । उसने आमाको लानेके लिये चांडाल कहा | चांडाल ने कहा, यह
का मौसम नहीं, इसलिये मैं निरुपाय हैं। नहीं तो मैं आम चाहे कितने ही ऊँचे हों वहीं से अपनी विद्या के बलसे तोड़कर तेरी इच्छा पूर्ण करता । चांडालिनीने कहा. राजाकी महारानीके बाग में एक असमय फल देने वाला श्रम है; उसमें श्राज-कल आम लगे होंगे। इसलिये आप वहाँ जाकर श्रामों को लावें । अपनी स्त्री की इच्छा पूर्ण करने को चा डाल उस बाग में गया। चांडालने गुप्तरीतिमं श्रमके समीप जाकर मंत्र पढ़कर वृक्षको नवाया और
उस पर आम तोड़ लिये। बाद में दूसरे मन्त्र के द्वारा उसे जैमाका तैसा का दिया । बादमें चीडाल अपने घर आया । इस तरह अपनी स्त्रीकी इच्छा पूरी करनेके लिये निरन्तर यह चांडाल विद्यार्थ बलसे वहाँसे आम लान लगा । एक दिन फिरतं २ मालीकी दृष्टि उन आमों पर गई। आमोंकी चोरी हुई जानकर उसने श्रेणिक राजा के आगे जाकर नम्रतापूर्वक सब हाल कहा । श्रेणिककी आज्ञा अभयकुमार नामके बुद्धशाली प्रधाननं युक्तिकं द्वारा उस चांडालको ढूंढ निकाला | चडलको अपने आगे बुलाकर अभयकुमारने पुछा, इतने मनुष्य बागमें रहते हैं, फिर भी तू किस रीतिसं ऊपर चढ़कर श्रम तोड़कर ले जाता है, कि यह बात किसीके जाननम नहीं आती ? चांडालने कहा, आप मेरा अपराध क्षमा करें, मैं सच २ कह देता