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________________ हम है, उनकी मूर्ति उमकी ६६ हजार रानियों सहित सालाबमें नहाती हुई नंगी नियों के सहारणके महाभनाई माय और जब वे फौज पलटन सेकर छह खंड निंदनीय किलोसको कणके बाम राधाके प्रेमको, मा मता करनेको निकले थे, तबकी उनकी मूर्ति को रोषनागके पकड़ने और कसको मार डालनेकी कृष्णाकी पलटन और लड़ाई के सब इथियारोसहित बनाई जाय बहादुरीको पजने बदनेयोग्य समझ, इस ही रूममें तो क्या हमारे दिगम्बर भाई उसको अपने जैन मन्दिरोंमें उसकी मक्ति स्तुति करते है। उसके इन ही सब कृल्मोंकी रखना मंजूर कर लेंगे ? क्या उनकोभी इसी तरह मानेंगे लीला करके अपनेको धन्य समझते हैं। यह हो सका जिस तरह इन वीतरागी प्रतिमाओको मानते हैं और कीर्तन,मक्ति-स्तुति और पूजन है। ऐसी ही अवस्थाओं क्या ऐसा करना जैनधर्म, जैनशास्त्रों और जैनसिद्धान्तोंके की वे मूर्तियाँ अपने मन्दिरोंमें बनाते हैं और प्रतिमायें विरुद्ध न होगा। स्थापन करते हैं। इन ही. सब लोलाप्रोंके करनेसे वे ___ यदि गृहस्थावस्था और राजपाटके समयकी तीर्थ- कृष्ण भगवान्की प्रतिमाको प्रतिष्ठित और मन्दिर में कर भगवान्की मूर्तियाँ मन्दिर में रखने और दर्शन और स्थापने पूजने और बंदने योग्य बनाते हैं। ऐसी ही मनन करने के योग्य नहीं हैं तब इन परम वीतरागी प्रतिमा वे श्रीरामचन्द्रकी बनाते हैं, जिनको बगल में प्रतिमानोंको मन्दिर में रखने और दर्शन मनन करने सीता बैठी हो, हनुमान गदा लिये पास खड़ा हो । इस योग्य बनाने के वास्ते इनके ऊपर गर्भ, जन्म और राज प्रतिमाकी प्रतिष्ठा यदि वे सीताके हरण होजाने पर भोगकी लीलाओंका हो जाना क्यों जरूरी समझा जाने रोते फिरने, फिर हनुमानकी सहायतासे लंका पर चढ़ाई लगा है । यह तो बिल्कुल हो उलटी बात हुई । जब करने, महाघमासान युद्ध कर लाखों करोड़ों पुरुषोंका हम भगवान्के बालपन या गृहस्थ-जीवनकी मूर्तियां बध होने के बाद रावणको मार सीताको घर ले श्रानेकी अपने लिये कार्यकारी नहीं समझते हैं, किन्तु उनकी लीला करने के द्वारा करें तो ठीक ही है। उनके मतके परमवीतराग अवस्थाकी मूर्ति ही अपने लिये कार्यकारी अनुसार उनके परमपूज्य विष्णुभगवान्ने रावणको समझते हैं, जिसके दर्शनसे हमको भी वीतरागताकी मारने के वास्ते ही तो रामचन्द्ररूपमें जन्म लिया था, प्रेरणा हो, हम भी इस पापी गृहस्थके जंजालके महा- और फिर इस ही प्रकार कंसको मारने और गोपियोंका मोहको तोड़ अपने प्रात्म कल्याण में लगें और महादुख- उद्धार करने के वास्ते ही कुष्माके रूपमें जन्म लिया था। काई संसारसागरसे निकल अविनाशी सच्चे सुखका इस ही प्रकारके रूपोंमें वे अपने विम्णु भगवानको अनुभव करें, तब इन परमवीतराग रूप मूर्तियोंके उपर पूजते हैं। इस कारण उनका राम और कृष्णको यह गर्भ-जन्म और गृहस्थभोग आदिका संस्कार करनेसे तो सब लीलायें करना, इन ही सब लीनाओंकी भक्ति इनको साफ तौर पर बिगाड़ना और अपने कामके योग्य स्तुति करना, इन सब लीलाओंके करनेसे ही इनकी नहीं रहने देना ही है। प्रतिमाओंको पूज्य और प्रतिष्ठित बनाना तो बेशक ठीक . वैष्णव हिन्दू श्रीकृष्णकी बाल्यावस्थाको "दुमक बैठता है, लेकिन इन गाने पड़ोमियोंकी यसकर, हमारा ठुमक चलत बाल बाजत पैजनियां" प्रामकी गोपियोंके भी अपनी परमवीतरागरूम प्रतिमाको अपने साथ उसकी नाना प्रकारकी क्रीड़ाओं और किलोगोंको, तीर्थकर भगवान्के बालपन, गृहस्थजीवन बोग
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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