SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ अनेकान्त [वर्ष ३, किरण १ *. अतः भाइयो! अब इस प्रकार काम नहीं पड़े तो जहाँ मन्दिरों में अच्छी आमदनी हो वहाँचलेगा । अब भी सोचो, जैनधर्मके प्रचार और के धनसे कोष पूरा करो। साथ ही, वीरशासनके प्रसारका मार्ग अभी भी खला हुआ है, सिर्फ पाव- दिन ऐसे सुन्दर, सुसम्पादित-प्रकाशित प्रन्थों श्यकता है एक बार अपनी हालतका सिंहावलोकन करो। ये सब ऐसी आवश्यक क्रियाएँ हैं, जो वीर पुस्तकों तथा ट्रेक्टोंका अधिकाधिक संख्यामें प्रचार करने और अपने कर्तव्य तथा उत्तरदायित्वको शासनके सम्बन्धमें हमारे उत्तरदायित्वको पूरा समझनेकी । ईमाई अपने मिशनरियों और अपनी करा सकती हैं और जिनका धीरशासन-दिवस लिटरेचर सोसाइटियों द्वारा, आर्यसमाज अपने मनाते समय हर जगह रिवाज पड़ जाना चाहिये। स्नातकों, सन्यासियों, तथा ब्रह्मचारियोंके द्वारा, जिस तरह अब भारतवर्ष में एक छोरसे दूसरे छोर तक महावीर-जयन्ती सार्वजनिकरूपसं और मुसलमान अपने बिरादराना मलूक व . मनाई जाने लगी है और उसके निमित्तसे अजैन बाहमी हमदर्दी के द्वारा आज जो अपने अपने लोग जानने लगे हैं कि जैनधर्म क्या चीज़ है,उसी धर्मप्रचारका कार्य कर रहे हैं, वह दूमरा नहीं कर तरह वीर-शासन दिवमके दिन जैनग्रन्थों, रहा है। भगवान महावीरके शासनमें रहते और पुस्तकों तथा ट्रेक्टोंके सुसम्पादन, लेखन तथा उसके अनुयायी कहते और उसके अनुयायी कह प्रकाशनके लिये खासतौर पर योजनाएँ की जानी चाहियें, धन एकत्र किया जाना चाहिये और उस लाते तुम्हारा यह कर्तव्य हो जाता है कि तुम वीर एकत्रित धनसे प्रकाशित माहित्यको जैन-जैनेतर शासन-दिवसको सार्थक बनानेके लिये वीरभग- संसारमें सम्यकज्ञानको जाग्रत करने के लिये खब बानकी शिक्षाओं पर यथाशक्ति अमल करनेके प्रचारित करना चाहिये । उस दिन प्रातःकाल संकल्पके साथ साथ जैनधर्मके अलौकिक ज्ञानके पूजन विधानादि हो तो दूसरे ममयोंमें कमसे कम प्रसारार्थ पैसा दान करो और कराओ, एक बड़ी वीर भगवान के महान् ज्ञानको प्रकाशमें लानेका क्रियात्मक उद्योग अवश्य होना चाहिये, तभी हम समिति प्रन्थ-प्रकाशनके लिये योग्य विद्वानोंकी अपने उत्तर दायित्वको कुछ निभा सकेंगे। अन्यथा कायम करो, ताकि वह तुलनात्मक पद्धति, इति- हमें एक विद्वानके शब्दोंमें किंचित् परिवर्तनके हाम और पुरातत्व प्राधारपर जैनधर्मकं महत्व. साथ कहना पड़ेगा किपूर्णप्रन्थोंका नये ढंगसे उत्तम संपादन एवं प्रकाशन "न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ जिनधर्मके भक्तो । कराए और धर्मके एक एक तत्त्व-उसके एक- तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में ॥" एक पहलू पर छोटे छोटे किन्तु सुन्दर और अल्प आशा है वीर भगवान और उनके शासनके मूल्य पर बेचेजानेवाले सरल और सीधे शब्दोंमें भक्त मेरे इस निवेदन और सामयिक सूचन पर ट्रेक्ट तथा पुस्तकें पुरस्कार दे देकर लिखाए और अवश्य ध्यान देनेकी कृपा करेंगे और आने वाले उन्हें लाखोंकी तादादमें छपानेमें स्वतंत्र रहे । उसे वीर जयन्तीके पुण्य-दिवस (श्रावणकृष्णाप्रतिपदा) धनकी कमी न रहना चाहिये। चन्देसे पोंमें, पर शासन-सम्बन्धमें अपने उपयुक्त कर्तव्य तथा उत्तरदायित्वको पूरा करने के लिये अभीसे उसकी जन्म, मरण, शादी और अन्य संस्कारोंमें योग्य तय्यारी करेंगे। दान देकर उसका कोष बढ़ानो और आवश्यकता
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy