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________________ ६२ अनेकान्त वर्ष ३, किरण १ %253D पड़ता है । जहाँ युद्ध रुका और आत्मा चुप बैठी हुई है । मान्य विद्वान् विद्यावारिधि वैरिष्टर चंपकि जड़वादका साम्राज्य उस दबाने लगता है। तरायजीन अपनी तुलनात्मक पद्धतिसे संसारकं इसलियं अज्ञान व प्रमादकी वृद्धिको रोकनेकं सब धर्मोकी शोध-खोजकर सिद्ध कर दिया है कि लिय निरन्तर सग्रन्थोंका अध्ययन, सत्संगतिका जैनधर्म एक अद्वितीय वैज्ञानिक धर्म है । ऐसे जैन सेवन विद्वानोंका समागम और सुसंस्कारोंकी धर्मका इस वैज्ञानिक युगमें भी प्रचार और प्रसार समय समयपर श्रावृत्तियाँ आवश्यक हो जाती हैं। न हो यह सचमुचमें हमारे धनशाली और धर्मधार्मिकपर्व हमारी त्रुटियों एवं कमजोरियोंको दूर परायण समाजकं लिये बड़े ही आश्चर्य तथा शर्मकरने हेतु ही बन हैं । इनको भले प्रकार मनाते की बात है, और इसके जिम्मेदार वीर भगवानके रहनेम हम संस्कारित होते हैं, अपने कर्तव्य- भक्त जैनधर्मकं अवलम्बी हमी जैनी श्रीमान् धीमान पालन में मावधान बनते हैं, हममें उत्साह तथा और उनके पीछे चलनेवाला सारा जन समाज है। पुरुषार्थ जागृत होता है, हमारे समाजस कदाचार- हमने अपने उत्तरदायित्वको जरा भी पूरा नहीं रूपी मैल छंटता रहता है और हम शुद्ध होते किया। रहते हैं। कोई ममय था जब जैनधर्मका प्रचार उसके ___ इस तरह सभी धार्मिकपों को सोल्लास मनाना कट्टर विरोधियोंके कारण रुका था और हम चि और उनके लिये सार्वजनिक उत्सवोंकी योजना ल्लाते फिरते थे कि अनुक जैनधर्मकं विद्वेषी दुष्टकरना परमावश्यक मालूम होता है तथा महापुण्य- राजाओंन हमारे धर्मग्रन्थ जला दिये, मूर्तियाँ नष्ट का कारण है । संसारी प्राणियोंक परम कल्याणार्थ करदी, लोगोंको घानी पर डाला इत्यादि, लेकिन प्रकट होनवाली वीर-भगवानकी धर्म-देशनाके अब उस धर्मकं प्रकाश एवं प्रचारमें आने के मार्गमें दिन तो उत्मव मनानकी और भी अधिक प्राव- बाधक कौन है ? हम जैनधमक परमभक्त कहलाने श्यकता है। इस महान धार्मिक पर्वकी महत्ता और वालोंके सिवा और कोई भी नहीं। मनानेकी आवश्यकता, उपयोगिता तथा विधि पर जैनधर्म हिन्दूधर्मकी एक शाखा है, बौद्धधर्म भनेक विद्वानोंने प्रकाश डाला ही है और वह सब जैनधर्मस प्राचीन है या बौद्धधर्मका रूपान्तर है, ठीक हा i; लेकिन मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि जैनियोंकी अहिंसाने भारतीयोंको कायरवनादिया है जिस तरह योग्य गणधरके अभावमें जीवोंकी और वह भारतवर्षकं पतनका कारण हुई, जैनिकल्याणकारिणी वीर भगवानकी पुण्य वाणी बहुत यांमें आत्मघातको धम बनाया है, ये ईश्वरको नहीं काल तक खिरनेस रुकी रही उसी तरह वर्तमानमें मानते, जैनियोंने भारतवर्ष बुतपरस्तीका श्रीगणेश हमारे जैसे अयोग्य विद्वानों और वणिक-समाजकी किया है, जैनियोंका गजनैतिक क्षेत्रमें कोई स्वतंत्र स्वार्थपरायणता तथा अदूरदृष्टिमय स्थूल धर्म बद्धि- अस्तित्व नहीं हो सकता, जैनियोंका स्याद्वाद एक के कारण विज्ञानकं इस वर्तमान बौद्धिकयुगमें भी गोरखधंधा , त्यादि अनेक मिथ्या धारणाएँ भगवानकी वाणी प्रकाश तथा प्रचारमें मानसे रुकी आज भी न सिर्फ हमारे पड़ोसियोंके हृदयमें
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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