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वर्ष २ किरण १]
शिलालेखोंसे जैन-धर्मकी उदरता
एक रंगरेजकी स्त्रीने और सन २६ ई० में गंधी रामगौंड ने भगवान पार्श्वकी अष्टप्रकारी पूजाके व्यासकी स्त्री जिनदासी ने अहंत भगवानकी लिये भी दान दिया था। वेलूरके शिलालेख नं० मूर्तियाँ बनवाई थीं! - निस्सन्देह उस समय १३८ (सन् १२४८) से विदित होता है कि आदि जैनधर्मका उदार-रूप दिखाई पड़ता था । गौंडन एक जिनमन्दिर निर्माण कराया था और
उसकी पूजा, ऋपियोंके आहारदान और जीर्णोद्धागिरिनगर (काठियावाड़) के एक शिलालख. रके लिए भूमि का दान दिया था।11। विजयनगरसे भी जैन-धर्मका उदाररूप स्पष्ट होता है । यह में एक तेलिनका बनवाया हुआ जिनमन्दिर गाणशिलालेख क्षत्रपनरेश रुद्रसिंह का है और इससे गित्ति जिनभवन' नामसे प्रसिद्ध है। चालुक्यस्पष्ट है कि उस शकराजाने जैन-मुनियों के लिये नरेश अमद्वितियकं एक लेखसे स्पष्ट है कि उनगुफायें बनवाई थीं । । इसी उल्लेखसं स्पष्ट है कि की प्रेयसी चामेक वेश्या जैन-धर्मकी परम उपावह राजा जैन-गुरुत्रोंका भक्त था-जैनाचार्योने मिका थी। उसने सर्वलोकाश्रयजिनालय' निर्माण इन विदेशियोंसे घृणा नहीं की थी।
कराया था और उसके लिये दान दिया था । उत्तर-भारतके समान ही दक्षिण भारतके सारांशत: यह स्पष्ट है कि दक्षिण-भारतके जैनशिलालेखोंस भी जैन-धर्मके उदार-स्वरूपके दर्शन सघम भी शूद्र और ब्राह्मण-उच्च और नीचहोते हैं। श्रवणवेलगोलके एक शिलालेखमें एक सबही प्रकारके मनुष्य को प्रात्मकल्याण करनेका सुनारक समाधिमरण करनेका उल्लेख है। वहीं एक समान अवसर प्राप्त हुआ था। अन्य शिलालेखमें 'गणित' (तेली) जातिकी आर्यि- राजपूतानामें बीजोल्या पार्श्वनाथ एक प्रसिद्ध काओंका उल्लेख हुआ है । शिलालेख नं० ६६ अतिशयक्षेत्र है। वहाँके एक शिलालंबसे म्पष्ट (२२७ सन १५३६) में माली हुविड के दानका है कि उस तीर्थकी वन्दना करने ब्राह्मण-क्षत्रीवर्णन है एवं शिलालेख नं० १४५ (३३६ सन वैश्य-शूद्र-सभी आते थे और मनोकामना पूरी १३२५) में लिखा हुआ है कि वेल्गोलकी नर्तकी करनेके लिए वहाँके वनीकंड में मभी म्नान करते मंगायीन त्रिभुवनचूड़ामणि जिनालय' निर्माण थे। ग़र्ज़ यह कि शिलालेखीय साक्षी जैन-धर्मकी कराया था । वेलरतालुक़ के शिलालेख नं० १२४ उदारताको मुक्त कण्ठसं म्वीकार करती है। क्या (सन ११३३ ई.) के लेखस प्रगट है कि तेली- वर्तमानक जैनी इमसे शिक्षा ग्रहण करेंगे और दास गौंडने जिन मन्दिर के लिये जैन-गुरु शान्ति- प्रत्येकको मन्दिरोंमें पूजा-प्रक्षाल और दान देनेका देवको भूमि का दान दिया था। उनके साथ २ अवसर प्रदान करंगे ?
* इपीग्रेफिका इंडिका, ११३८४...
11 इपीग्रेफिया कर्नाटिका, भा० ५ पृ० ८३ । जनल भाव दी रॉयल ऐशिया. मो०. भा० ५ पृष्ट १८८ ||| इपी० कना०, भा० ५ पृ० ९२ ।।
IN इपीओफिया इंडिका, भा० ७ १८२। [ रिपोर्ट आन दी एटीकटीज़ आब काठियावाड़।
| ग्वतीतीरकुडेन या नारी स्नानमाचरेत् । एन्ड कच्छ, पृष्ट १४५-१४६ ।
मा पुत्र भतृ मौभाग्यं लक्ष्मी च लभते स्थिराम् ।। + पतितोद्धारक जनधर्म, पृष्ट ३५ ।
ब्राह्मणः क्षत्रियो वापि वैश्यो वा शूद्रो जोऽपिवा। ......स्नानकता म प्राप्नोत्युनमो गतिम ॥७६।।
जैन मिद्धान्तभाकर, भा०२ पृ: ५६. ।