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________________ शिलालेखोंसे जैन-धर्मकी उदारता - लेखक श्री. बाबू कामताप्रसाद जैन साहित्यमनीषी 'विप्रतत्रियविट्शूद्राः प्रोक्ताः क्रियाविशेषतः । जैनधर्मे पराः शक्तास्ते सर्वे बांधवोपमाः || नशाश्रमं मनुष्यों की मूलतः एक जाति घोषित की गई है - मनुष्यों में घोड़े और बैल जैसा मौलिकभेद जैनशास्त्राने कहीं नहीं बनाया हूँ । लौकिक अथवा जीवन-व्यवहारकी सुविधाके लिये जैनाचार्योंने कर्मकी अपेक्षा मनुष्योंको ब्राह्मण क्षत्रिय-वैश्य - शूद्र-वर्गों में विभक्त करनेकी कल्पना मात्र की है । यही कारण है कि प्राचीन कालसे लोग अपनी आजीविकाको बदल कर वर्ण-परिवर्तन करते आये हैं । आजकल उत्तर भारतके जैनियों में अधिकांश वैश्य जातियाँ अपने पूर्वजोंको क्षत्रिय बतानी है-वर्ग परिवर्तन के ये प्रत्यक्ष उदाहरण हैं । श्रमवाल, श्रोसवाल लम्बक यदि जातियोंके पूर्वज क्षत्रिय ही थे, परंतु आज उनकी ही सन्तान वणिक-वृत्ति करने के कारण वैश्य होगई है । दक्षिण भारतके होयसल वंश के राजत्वकालमें वर्ण परिवर्तन होनेके उल्लेख मिलते हैं । हस्सन तालुक़के एल्कोटिजिनालय के शिलालेख (नं० १२० सन १९४७ ई०) से स्पष्ट है कि होयसलनरेश विष्णुवर्द्धन के एक सरदार पेरम्माडि नामक थे, जो 66 श्रीश्रजितसेनाचार्यजीकं शिष्य थे किन्तु इन्हीं पेरम्माडि सरदार के पौत्र मसरण और माि श्रीपदके अधिकारी हुए थे, अर्थात वे शासनकर्मके स्थान पर वणिक्कर्म करने लगे थे । शिलालेखमें इसी कारण वह सरदार (शासक) न कहे जाकर श्रेष्टो कहे गये हैं । बेलूरतालुक़के शिलालेख नं० ८६ (सन ११७७ ) से स्पष्ट है कि होयसल नरेश वीर बहालदेव के महादंडनायक तंत्रपाल पेम्माडि थे, जिनके पूर्वज चूड़ीके व्यापारी ( Bangle sellers) मारिसेट्टी थे । मारिसेट्री एक दफा व्यापार के लिये दक्षिण भारतको आये और वहाँ उनकी भेंट पोयमलदेवसे हो गई । होयसलनरेश उनसे बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें एक महान शामक (Giral (hiinf) नियुक्त किया । इन्हींके पौत्र तंत्रपाल हम्माडियर थे। बल्लालदेव ने बाकायदा दरबार बुलाकर उनके शीशपर राजपट्ट बाँधा था । इस शिलालेखीय साक्षीसे वर्ण-परिवर्तन की वार्ता स्पष्ट होजाती है । इसीलिये जैनाचार्य वभिद की अपेक्षा मनुष्योंमें कोई मौलिक भेद स्थापित *इपीथेफिया कर्नाटिका, भा० ५ पृष्ट ३६ व ६७ होयसल श्री वीर बल्लालदेवरु श्रीमान्-महा-राजधानि दोरासमुद्रद्द नेलेविदिनालु सुख-संकथा विनोददिं पृथिवी-राज्यं गेय्युत्तम् हरे तत्याद- पद्मोपजीवि श्रीमान महाप्रधान-तंत्रपाल - पेम्माडिय-अन्वयव् एन्तेन्द अय्यावले बलेगार - मारिसेही तेन्कलु व्यवहारदि चन्दु पोयसलदेवनं कन्दु कारुण्यं बडदु हडदु महाप्रभुवाग् इरलातमं... तंत्रपालहेम्मा डियराम... साम्राज्य पट्टमं कहिसित्यादि ।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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