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________________ अनेकान्त [कार्तिक, वीर-निर्वाण सं० २४६५ स्वागत-गान (रचयिता-कल्याणकुमार जैन 'शशि') मलयानिल कोकिल कलिकाएँ करती अमर प्रेम-प्रक्षाल । नवजीवनके मुक्त-कण्ठमें डाल डाल सुन्दर वरमाल ।। 'अनेकान्त' नूतन साकृति बन, पाकर कण-कणमें विस्तार । अखिल जगतमें पुनःप्रवाहित हो, बनकर पुनीत रस-धार ॥ आज चिरंतन दिव्य ज्योतिसे सुख-सौभाग्य-कीर्ति-यशका होदीख रहा है विश्व विशाल। प्राप्त तुम्हें नूतन-वरदान । नव किरणोंसे आच्छादित हो, इसी हेतु आनन्दित हो करतरु-लतिकाएँ हुईं निहाल ॥ रहे तुम्हारा स्वागत-गान ।। वीर-निर्वाण (रचयिता-कल्याणकुमार जैन 'शशि') फिर सरसता जग उठी है लग रहा है और कुछ हीप्राणमें संचरित होकर । आज मुझको दिव्य जीवन । मानसरमें भर रहा है। आज मानों लहलहाया___ कौन यह जीवन निरन्तर ? हो शतोमुख विश्व-उपवन ॥ -of0400 mmmmmmmmmmmm फिर नया-सा हो रहा है रोम रोम प्रदीप्त-प्रमुदित । बज उठेगी उल्लसित हो आज हृतंत्री कदाचित ॥ प्राणके प्रत्येक कणमें आप्त-व्याप्त नवीनता है ।। मग्न हो, जय-केतु बन, फह रा रही स्वाधीनता है । newmarmaravad हाँ, इसलिये आनन्द है सर्वत्र खग-नर-देव-घर । आज पाया है महाप्रभु'वीर' ने निर्वाण गुरुतर ।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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