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ॐ अहम्
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नीति-विरोध-धंसी लोक-व्यवहार-वर्तकः सम्यक। नाता 17 परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥
वप २
सम्पादन-स्थान--वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम), सरसावा जि. सहारनपुर
प्रकाशन-स्थान-कनॉट सर्कस पो० ब०नं०४८ न्यू देहली कार्तिकशुक्ल, वीरनिर्वाण सं० २४६५, विक्रम सं० १६६५
किरण १
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समन्तभद्र-स्मरण येना शेष-कुनीति-वृत्ति-सरितः प्रेक्षावतां शोषिताः, यद्वाचोऽप्यकलंकनीति-रुचिरास्तत्त्वार्थ-सार्थद्युतः । स श्रीस्वामिसमन्तभद्र-यतिभृदभूयाद्विभुर्भानुमान,
विद्याऽऽनन्द-घनप्रदोऽनघधियां स्याद्वादमार्गाग्रणीः ॥ जिन्होंने परीक्षावानोंके लिये सम्पूर्ण कुनीति और कुवृत्तिरूपी नदियोंको सुखा दिया है, जिनके वचन निर्दोषनीति-स्याद्वादन्याय-को लिये हुए होनेके कारण मनोहर हैं तथा तत्त्वार्थसमूहके द्योतक हैं वे यतियोंके नायक, स्यद्वादमार्गके नेता, विभु-सामर्थ्यवान् और भनुमान-सूर्यके समान देदीप्यमान अथवा तेजस्वी-श्री समन्तभद्रस्वामी कलुपित-आशय-रहित प्राणियोंको-सजनों अथवा सुधीजनोंकोविद्या और आनन्दघनके प्रदान करनेवाले होवे-उनके प्रसादसे (प्रसन्नतापूर्वक उन्हें चित्तमें धारण करनेसे )सबोंके हृदयमें शुद्धज्ञान और आनन्दकी वर्षा होवे ।