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जैन समाज क्यों मिटरहा है ?
वर्ष २ किरण १]
कारण सन्तानोत्पादन शक्तिसे वंचित है। अर्थान् समाजका पौन भाग सन्तान उत्पन्न नहीं कररहा है ।
यदि थोड़ी देरको यह मान लिया जाय कि १५ वर्षकी आयु कम ३६७१७ विवाहित दुधमुँहे चियाँ कभी तो सन्तान उत्पादन योग्य होंगे ही, तो भी बात नहीं बनती । क्योंकि जब ये इस योग्य होंगे तब ३० से ४० की आयु वाले विवाहित स्त्री-पुरुष, जो इस समय सन्तानोत्पादनका कार्य कर रहे हैं, वे बड़ी आयु होजानेके कारण उस समय अशक्त हो जायेंगे । अतः लेखा ज्यों का न्यों रहता है । और इस पर भी कहा नहीं जा सकता कि इन अवोध दूल्हा-दुल्हिनों में कितने विधुर तथा वैधव्य जीवनको प्राप्त होंगे।
जैन समाज में ४० वर्षसे कमकी आयु वाले विवाह योग्य २५५५१० क्वारे लड़के और इसी आयुकी २०४७५६ क्वारी लड़कियाँ हैं । अर्थात लड़कोंसे ५०७५४ लड़कियाँ कम हैं। यदि सब लड़कियाँ क्वारे लड़कोंसे ही विवाही जाँय तोभी उक्त संख्या क्वारे लड़कों की बचती है। और इसपर भी तुर्रा यह है कि इनमें से आधी भी अधिक लड़कियाँ दुबारा तिवारा शादी करनेवाले अधेड़ और वृद्ध हड़प करजायगे । तब उतने ही लड़के क्वारं और रहजायेंगे । अतः ४० वर्षकी आयुसे कमके ५०७५४ बचे हुये क्वारे लड़के और ४० वर्षकी आयु ७० वर्ष तककी आयुके १२४५५ बचे हुये क्वारे लड़के लड़कियोंका विवाह तो इस जन्ममें न होकर कभी अगले ही जन्मोंमें होगा ।
प्रश्न होता है कि इस मुट्ठीभर जैन
समाजमें इतना बड़ा भाग क्वारा क्यों है ? इसका स्पष्टीकरण सन् १६ १४ की दि० जैन डिरेक्टरी के निम्न अंकोंसे हो जाता है.
:
दि०जैन समाज अन्तर्गत जातियाँ | कुल संख्या ।
६७१२१
६४७२६
२०६६५
६४
१ अप्रवाल
२ खण्डेलवाल
३ जैसवाल
जैसवाल सा
४ परवार
५. पद्मावती पुरवाल
६ परवार दसा
७ परवार - चौसके पल्लीवाल ६ गोलालार
१० विनैक्या
११ गान्धीजैन
१२ श्रीसवाल
१३ ओसवाल- बीमा
१४ गंगलवाल
१५ बड़ेले
१६ वरैया
१७ फतहपुरिया
७५
१८ उपाध्याय
१६ पोरवाल
२० बुढ़ले
२१ लोहिया
२२ गोलसिंघारे
२३ खरौआ
२४ लमेचु २५ गोलापूरव २६ गोलापूरव पचविसं
४१६६६
११५६१
१२७७
بری بلا
५५८२
३६८५
२०
७०२
४५.
ویی
१६
१५८४
१३५
१२१६
११५
५६६
६०२
६२६
१७५०
१६७७
१०६४०
१६४