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________________ अनेकान्त [कार्तिक, वीर-निर्वाण सं० २४६५ के लिये आज संसारमें संघर्ष मचा हुआ है और रियोंने चट कर लिया ? इन्हीको बाढ़ बहा ले मनुष्य-मनुष्यके रक्तका प्यासा बना हुआ है। गई ? और भूकम्पके धक्कोंसे भी ये ही रसातलमें यदि इसी तेजीस संसारकी जन-संख्या बढ़ती रही समा गये ? यदि नहीं तो ६ लाख बढ़नेके बजाय तो, प्रलयके आनेमें कुछ भी विलम्ब न होगा। ये तीन लाख घटे क्यों ? अर्थशास्त्रियोंको संसारकी इस बढ़ती हुई जन- इस 'क्यों' के कई कारण हैं। सबसे संख्यास जितनी चिन्ता हो रही है, उतनी ही हमें पहले जैन-समाजकी उत्पादनशक्तिकी परीक्षा करें घटती हुई जैन-जन-संख्यासे निराशा उत्पन्न हो रही तो सन १६३१ की मर्दमशुमारीके अंकोंसे प्रकट है। भारतवर्षकी जन-संख्याके निम्न अंक इस होगा कि जैन-समाज में :बातके साक्षी हैं : विधवा ... ... ... १३४२४५ विधुर ... ... ... ५२६०३ भारतवर्षकी सम्पूर्ण केवल जैन जन-संख्या जन-संख्या १ वर्षसे १५ वर्ष तक के कारे लड़के १६६२३५ सन १८८१ २८ करोड़ १५ वर्षसे ४०" " " ... ८६२७४ १५००००० ४० वर्षसे ७०" " " ... १४ सन १८६१ २६ करोड़ १४१६६३८ सन १६०१ ३० करोड़ १३३४१४० १ वर्षस १५ वर्ष तककी कारी लड़कियां १६४८७२ सन् १९११ ३१ करोड़ १२४८१८२ १५ वर्षसे ४० " " " ६४ सन १६२१ ३३ करोड़ ११७८५६६ ४० वर्षसे ७० " " " ७८७ सन १६३१ ३५ करोड़ १२५१३४० वर्षसे १५ वर्ष तकके विवाहित स्त्री-पुरुष ३६७१७ ___ उक्त अंकोंसे प्रकट होता है कि ४० वर्षों में १५ वर्षसे ४० " " " " ४२०२६४ भारतकी जन-संख्या ७ करोड़ बढ़ी । जब कि इन्हीं ४० वर्षसे७० " " " " १३६२२४ ४० वर्षों में ब्रिटिश-जर्मन युद्ध, प्लेग, इन्फ्लुएँञ्जा, कुल योग १२५१३४० तूफान, भूकम्प-जलजले, बाढ़ वगैरहमें ७-८ करोड़ भारतवासी स्वर्गस्थ होगये, तब भी उनकी १२५१३४० स्त्री-पुरुषोंमें १५ वर्षकी आयुसे जन-संख्या ७ करोड़ और बढ़ी। यदि इन मृतकों लेकर ४० वर्षकी आयुके केवल ४२०२६४ विवाकी संख्या भी जोडली जाय तो ४० वर्ष में भारतवर्ष हित स्त्री-पुरुष हैं, जो सन्तान उत्पादन योग्य कह की जन-संख्या ड्योढ़ी और इसी हिसाबसे जैन- जासकते हैं। उनमें भी अशक्त, निर्बल और रुग्ण जन संख्या भी २२ लाख होनी चाहिये थी। किन्तु चौथाईके लगभग अवश्य होंगे, जो सन्तानोत्पत्ति वह ड्योढ़ी होना तो दूर, घटकर पौनी रह गई। ' का कार्य नहीं कर सकते। इस तरह तीन लाख___ तब क्या जैनी ही सबके सब लामपर चले को छोड़कर ६५१३४० जैनोंकी ऐसी संख्या है. गये थे ? इन्हींको चुन-चुनकर प्लेग आदि बीमा- जो वैधव्य, कुमारावस्था, बाल्य और वृद्धावस्थाकं
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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